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डॉ. एम एम पल्‍लम राजू को, शि‍क्षा प्रणाली को मजबूत बनाने के लिए, सर्वोच्‍च सम्‍मान

इलेक्‍ट्रॉनि‍क्‍स एवं दूरसंचार अभि‍यंता संस्‍थान (आईईटीई) ने मानव संसाधन वि‍कास मंत्री डॉ. एम एम पल्‍लम राजू को संस्‍थान का सर्वोच्‍च सम्‍मान ‘दी ऑनरेरी फैलोशि‍प’ प्रदान कि‍या है। इससे पहले जब डॉ. राजू ने रक्षा राज्‍य मंत्री का पद संभाला था, तब संस्‍थान ने वर्ष 2006 में ‘फैलो ऑफ आईईटीई’ सम्‍मान प्रदान कि‍या था। उपरोक्‍त सम्‍मान प्राप्‍त करने के अवसर पर मंत्री महोदय ने कहा कि‍आईईटीई जैसे प्रति‍ष्‍ठि‍त संस्‍थान द्वारा सम्‍मान प्राप्‍त करना बहुत अहम है। उन्‍होंने यह सम्‍मान देने के लि‍ए संस्‍थान को धन्‍यवाद दि‍या।
बताय गया है कि‍ इलेक्‍ट्रॉनि‍क्‍स, दूरसंचार और सूचना प्रौद्योगि‍की के क्षेत्र में शानदार उपलब्‍धि‍प्राप्‍त करने वाले व्‍यक्‍ति‍यों को यह सम्‍मान दि‍या जाता है। आईईटीई देश में वि‍ज्ञान, प्रौद्योगि‍की, इलेक्‍ट्रॉनि‍क्‍स, दूरसंचार और सूचना प्रौद्योगि‍की के क्षेत्र में अग्रणी संस्‍था है, जि‍सका गठन 1953 में कि‍या गया था। देश और वि‍देश में संस्‍थान के 52 केन्‍द्र है, जि‍नसे 52 हजार से अधि‍क सदस्‍य जुड़े हुए हैं।
डॉ. राजू को संस्‍थान ने देश के बच्‍चों की शि‍क्षा प्रणाली को मजबूत बनाने, कौशल वि‍कास और युवाओं में उद्दमशीलता को बढ़ाने के क्षेत्र में उनके अभूतपूर्व योगदान के लि‍ए ‘दी ऑनरेरी फैलोशि‍प’ प्रदान कि‍या है।
Photo Caption
The Union Minister for H R D , Dr. M.M. Pallam Raju receiving the Honorary Fellowship of the Institution of Electronics and Telecommunication Engineers (IETE), at a function, in New Delhi on July 18, 2013.

एस सी गोयल को मंत्रिमंडल सचिवालय में सचिव समन्‍वय और लोक शिकायत का अतिरिक्‍त प्रभार मिला

कैबिनेट की नियुक्ति समिति ने निम्‍न नियुक्तियों की मंजूरी दी है:
[1]. मंत्रिमंडल सचिवालय में विशेष सचि‍व श्री एस सी गोयल (आईएएस केरल) को मंत्रिमंडल सचिवालय में सचिव समन्‍वय और लोक शिकायत का अतिरिक्‍त प्रभार तीन महीने के लिए दिया गया है।
[2]. वाणिज्‍य और उघोग मंत्रालय के औघोगिक नीति एवं संवर्द्धन विभाग में संयुक्‍त सचिव सुश्री अंजलि प्रसार की ओघोगिक नीति एवं संवर्धन विभाग में अतिरिक्‍त सचिव के नव सृजित पद पर नियुक्ति की गई है।
[3]. आईएएस के हिमाचल कैंडर में कार्यरत श्री आशा राम सिहाग को विदेश मंत्रालय में अतिरिक्‍त सचिव तथा वित्‍तीय सलाहकार नियुक्‍त किया गया है। श्री सिहाग की नियुक्ति श्री बिमल जुल्‍का (आईएएस मध्‍य प्रदेश) के रिक्‍त पद पर की गई है।
[4]. राष्‍ट्रपति सचिवालय में संयुक्‍त सचिव श्री थॉमस मैथ्‍यू (आईएएस केरल) की नियुक्ति राष्‍ट्रपति सचिवालय में ही अतिरिक्‍त सचिव के रूप में की गई है।
[5]. रक्षा मंत्रालय में संयुक्‍त सचिव सुश्री प्रीति सुदान (आईएएस, आंध्र प्रदेश) को श्री निलंजन सान्‍याल (आईएएस, उडीसा ) के रिक्‍त पद पर महिला और बाल विकास मंत्रालय में अतिरिक्‍त सचिव नियुक्‍त किया गया है।
[6]. प्रधानमंत्री कार्यालय में संयुक्‍त सचिव श्री शत्रुघ्‍न सिंह (आईएएस, उत्‍तराखंड) को प्रधानमंत्री कार्यालय में ही अतिरिक्‍त सचिव नियुक्‍त किया गया है।
[7]. लोक उघम विभाग में संयुक्‍त सचिव श्री अरूण कुमार सिन्‍हा (आईएएस, उत्‍तर प्रदेश) को श्रम तथा रोजगार मंत्रालय में श्री अनिल स्‍वरूप (आईएएस,उत्‍तर प्रदेश) के रिक्‍त पद पर अतिरिक्‍त सचिव के रूप में नियुक्‍त किया गया है।
[8]. गृह मंत्रालय में संयुक्‍त सचिव श्री कमल कांत मित्‍तल को संस्‍कृति मंत्रालय में श्री रवीन्‍द्र सिंह (आईएएस,उत्‍तर प्रदेश) के रिक्‍त पद पर अतिरिक्‍त सचिव नियुक्‍त किया गया है।

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जाम्बिया + म्‍यांमार + केन्‍या + लेबनान के राजदूतों ने राष्‍ट्रपति को पेश किये पद के प्रमाण पत्र

चार नये राजदूतों ने राष्‍ट्रपति को पेश किये पद के प्रमाण पत्र
आज नई दिल्‍ली में राष्‍ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी को चार देशों के राजदूतों ने अपने पद के प्रमाण पत्र पेश किये। राष्‍ट्रपति भवन में एक समारोह में जिन राजदूतों ने पद के प्रमाण पत्र पेश किये उनके विवरण इस प्रकार है :-1 महामहिम ब्रिगेडियर जनरल पैट्रिक र्योमेद्यो तेम्‍बो (सेवानिवृत्‍त), जाम्बिया गणराज्‍य के उच्‍चायुक्‍त।
2 महामहिम यू ओंग खिन सो, म्‍यांमार गणराज्‍य के राजदूत ।3 महामहिम श्रीमती फ्लोरेन्‍स इमीसा वेचे, केन्‍या गणराज्‍य की उच्‍चायुक्‍त।4 महामहिम वाजिब अब्‍दल समद, लेबनान गणराज्‍य के राजदूत।

हेमलेट की भूमिका निभाने वाले पहले पी एम् हमेशा स्वयम को जूलियस सीज़र ही बताते रहे: सीधे एल के अडवाणी के ब्लाग से

भाजपा के पी एम् इन वेटिंग और वरिष्ठ पत्रकार लाल कृष्ण अडवाणी ने अपने ब्लॉग में पुस्तकों के माध्यम से अपने पुराने [अब दिवंगत हो चुके] साथियों के यौगदान को याद किया और कांग्रेस की नीतियों की आलोचना की है| प्रस्तुत है सीधे एल के अडवाणी के ब्लाग से:
6 जुलाई को पूरे देश में डा. श्यामा प्रसाद मुकर्जी की जयंती मनाई गई।उस शाम मैंने राष्ट्रीय संग्रहालय सभागार में एक पुस्तक: ”जम्मू-कश्मीर की अनकही कहानी” का लोकार्पण किया।
मेरे जैसे लाखों पार्टी कार्यकर्ता सही ही गर्व करते हैं कि हम एक ऐसी पार्टी से जुड़े हैं जिसका पहला राष्ट्रीय आंदोलन राष्ट्रीय एकता के मुद्दे पर हुआ और राष्ट्रीय एकात्मता के लिए ही हमारी पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष ने अपना जीवन न्यौछावर कर दिया। लेकिन हममें से अनेक को यह शायद जानकारी न हो कि हमने जो देशव्यापी संघर्ष शुरु किया था, वह जम्मू-कश्मीर में जनसंघ के 1951 में जन्म से पूर्व ही एक

क्षेत्रीय पार्टी-प्रजा परिषद

ने शुरु किया था जिसका नेतृत्व पण्डित प्रेमनाथ डोगरा के हाथों में था। प्रजा परिषद के संघर्ष और त्याग की अनकही कहानी को देश के सामने लाने के लेखक के निर्णय की मैं प्रशंसा करता हूं।
यह उल्लेखनीय है कि डा. मुकर्जी के बलिदान के बाद, प्रजा परिषद ने जनसंघ में विलय का फैसला किया। कुछ समय बाद, पण्डित डोगरा जनसंघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए।
सात जुलाई को दिल्ली के केशवपुरम में दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री डा. साहिब सिंह वर्मा की छठी पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित भव्य कार्यक्रम में मैंने दिवगंत नेता की प्रतिमा का अनावरण किया और उनकी पुत्री रचना सिंधु द्वारा उनके जीवन तथा उपलब्धियों पर लिखी गई पुस्तक का लोकार्पण किया। देश में दिल्ली पहला स्थान है जहां जनसंघ ने अपनी प्रारम्भिक जड़ें जमाई। लेकिन इससे पार्टी की एक असंतुलित छवि भी बनी कि यह प्रमुख रुप से एक शहरी पार्टी है। इस छवि को सुधारने का श्रेय साहिब सिंहजी को जाता है, साथ ही ग्रामीण दिल्ली के विकास और कल्याण हेतु सुविचारित योगदान का श्रेय भी उनके मुख्यमंत्रित्व काल को जाता है। उनके पुत्र प्रवेश वर्मा द्वारा आयोजित कार्यक्रम में अच्छी संख्या में लोग आए थे। इसमें साहिब सिंह की खूब प्रशंसा हुई, अनेक वक्ताओं ने उन्हें ‘न केवल व्यक्ति अपितु एक संस्थान‘ के रुप में निरुपित किया।
दो दिन पूर्व 12 जुलाई को एक

प्रमुख पत्रकार पी.पी. बालाचन्द्रन की पुस्तक ”ए व्यू फ्राम दि रायसीना हिल”

का मैंने लोकार्पण किया। इस मास के पहले पखवाड़े में यह तीसरी पुस्तक भी जिसे मैंने लोकर्पित किया।
पुस्तक विमोचन के कार्यक्रमों में, मैं अक्सर 1975-77 के आपातकाल में बंगलौर सेंट्रल जेल में अपने बंदी होने का स्मरण कराता हूं। उन बंदी दिनों में एक शब्द ऐसा था जो हम सब साथियों को राहत और आनन्द देता था, और वह शब्द था ‘रिलीज‘। तब से, जब भी कोई मेरे पास पुस्तक को ‘रिलीज‘ करने का अनुरोध लेकर आता है तो मैं शायद ही उसे मना कर पाता हूं।
लेखक का नाम ‘बाला‘ लोकप्रिय है जो स्वयं के परिचय में अपने को ‘एक अनिच्छुक लेखक‘ वर्णित करते हैं, ने मुझे हाल ही में अमेरिकी फिल्म निर्माता मीरा नायर द्वारा निर्मित फिल्म का स्मरण करा दिया। फिल्म पाकिस्तान के मोहसिन हमीद द्वारा लिखित पुस्तक ”दि रिलक्टन्ट फण्डामेंटिलिस्ट” पर आधारित है। मीरा नायर की फिल्म की शीर्षक भी यही है और अनेक समीक्षाओं में इसे सराहा गया है। कनाडा के एक समाचार पत्र नेशनल पोस्ट में प्रकाशित समीक्षा की शुरुआती टिप्पणी इस प्रकार थी: ”ऐसा अक्सर ही होता है कि कोई फिल्म उस पुस्तक को सुधारे जिस पर वह आधारित है, लेकिन मीरा नायर की दि रिलक्टन्ट फण्डामंटिलिस्ट बिल्कुल यह करती है।”
इस समीक्षा में फिल्म का सारांश इस तरह दिया गया है: चंगेज नाम का एक पाकिस्तानी व्यक्ति अमेरिका आता है ताकि वॉल स्ट्रीट में अपना भाग्य बना सके, लेकिन 9/11 के बाद वह अहसास करने लगता है कि वह इसमें फिट नहीं बैठता।
बाला 40 वर्षों से पत्रकारिता में हैं, जैसेकि परिचय में उन्होंने अपने बारे में सही ही लिखा है: ”शायद मैं एकमात्र ऐसा पत्रकार हूं या उन कुछ में से एक हूं जिन्होंने समूचे मीडिया इन्द्रधनुष-समाचारपत्र, पत्रिकाएं, सवांद एजेंसी, रेडियो और टेलीविज़न, तथा वेब (वेबसाइट)- में एक भरोसेमंद स्टाफकर्मी तथा एक गैर भरोसेमंद स्वतंत्र पत्रकार के रुप में काम किया है। इसके अलावा दो पत्रिकाएं मैंने शुरु कीं और सम्पादित की। सत्तर के दशक के शुरुआत में एक व्यापार पत्रिका (यदि यह चलने दी गई होती तो भारत की पहली व्यापार पत्रिका होती) और दूसरी अप्रवासी भारतीयों के लिए एक पाक्षिक पत्रिका, जोकि अपने आप में पहली थी। दोनों वित्तीय पोषण के अभाव में शैशवास्था में ही दम तोड़ गर्इं।
एक विदेशी सवांददाता के रुप में बाला ने सबसे पहले हांगकांग से प्रकाशित साप्ताहिक एशियावीक के लिए काम किया, वह इस महत्वपूर्ण पत्रिका के भारत में पहले स्टाफ सवांददाता बने। बाला कहते हैं कि यह तीन साल तक चला। वह लिखते हैं: ”इसके बाद अनेक अन्य बड़े-बडे अतंरराष्ट्रीय प्रकाशन इस कड़ी जुड़े। उनमें थे रेडियो आस्ट्रेलिया] वांशिगटन पोस्ट, गल्फ न्यूज और रायटर साथ-साथ डेली मेल टूडे जैसे ब्रिटिश साप्ताहिक तथा यूएसए टुडे भी।”
पुस्तक के आवरण पर लेखक की अपनी टिप्पणी बहुत सटीक प्रतीत होती है। वह कहते हैं कि वह तभी लिखते हैं जब वह ‘द्रवित‘ हो उठते हैं, वह आगे लिखते हैं” अनुभव में मुझसे आधे लोग जब अलमारी के एकड़ के ज्यादा हिस्से पर छाए रहते हैं तब मैं केवल एक छोटा सा संग्रह कर पाया हूं जिसे ज्यादा से ज्यादा सम्पादकीय लेखन या निबन्ध वर्णित किया जा सकता है।”
परन्तु मैं इस पुस्तक के प्रकाशक से इस पर पूरी तरह सहमत हूं कि एक लेखक के बारे में निर्णय उसके कार्य के आकार के बजाय उसके लेखन की गुणवत्ता से करना चाहिए। मैं इस 163 पृष्ठीय पुस्तक को थोड़ा पढ़ पाया हूं। उनके द्वारा प्रकट किए गए सभी विचारों से मैं भले ही सहमत नहीं होऊं लेकिन जहां तक उनके लेखन की गुणवत्ता का सम्बन्ध है, मैं अवश्य कहूंगा कि यह शानदार है। अपने परिचय की शुरुआत में अपने बारे में लिखे गए उनके कुछ पैराग्राफ का नमूना यहां प्रस्तुत है। वह कहते हैं:
”लिखने का प्रत्येक प्रयास दिमाग पर धावा बोलना है; और प्रत्येक लेखक अपने निजी आंतरिक विचारों का लुटेरा है; विचारों को वह अपने दिमाग की गहराईयों से लाता है और दुनिया के सामने रखने से पहले उन्हें शब्दों और छवियों में पिरोता है।
निस्संदेह यह अत्यन्त दु:खदायी काम है जहां सारी पीड़ा सिर्फ लेखक की है।
कुछ इसे एक सीरियल किलर के रौब से करते हैं। अन्य इसे एक सजा के रुप में भुगतते हैं जिससे भागने में वे असफल रहे हैं। किसी भी रुप में, यह एक त्याग का काम है, आत्मा की शुध्दि का और इसलिए एक भाव विरेचक अनुभव है।
मैं शब्दों की दुनिया में पत्रकारिता के माध्यम से आया जो केवल लेखन के अलंकृत विश्व के साथ खुरदरा सम्बन्ध रखती है। मैं मानता हूं कि यद्यपि पत्रकारिता में मेरा प्रवेश कभी भविष्य में लेखक बनने की गुप्त इच्छा के बगैर नहीं था, तथापि मैं सोचता हूं कि पत्रकारिता एक ऐसा मार्ग था जो एक लेखक बनने की इच्छा हेतु मार्ग प्रशस्त करती है।
सौभाग्य से या अन्य कारण से प्रत्येक पत्रकार लेखक नहीं बनता। लेकिन जैसे प्रत्येक गणिका पत्नी नहीं बनती। सभी पत्रकार गणिकाएं हैं जो रानियां बनना चाहते हैं: लेकिन दहलीज इतनी चौड़ी है कि उनके यह बनने की प्रगति सदैव सुखद रुप से कम रहती है।”
***आज का ब्लॉग एक पुस्तक के बारे में है जिसे दो दिन पूर्व मैंने विमोचित किया था और जिसके शीर्षक में मैंने लिखा था – ‘अत्यन्त सुंदर ढंग से लिखी गई।‘ लेकिन ब्लॉग अभी तक सिर्फ लेखक के बारे में बोलता है। मैं अपने पाठकों को पुस्तक की सामग्री की एक झलक भी देना चाहता हूं। ब्लॉग के इस हिस्से में मैं पुस्तक से मात्र एक उध्दरण देना चाहता हूं जो हमें बताता है कि कैसे बाला रायसीना हिल की अपनी विशिष्ट स्थिति से भारत के पहले प्रधानमंत्री पण्डित नेहरू, श्रीमती इंदिरा गांधी और श्री अटल बिहारी वाजपेयी को देखते हैं, साथ ही भ्रष्टाचार और परमाणु शक्ति को भी।
पहला उध्दरण शीर्षक ”अवर ट्रायस्ट विद् नेहरूस लैम्प पोस्ट” वाले अध्याय से है। यह कहता है:
पण्डित नेहरू अनेक लोगों के लिए बहुत कुछ थे। वह एक प्रतिभाशाली बैरिस्टर थे जो एक मंहगे वकील बन सकते थे यदि उन्हें पहला पाठ गांधी से न मिला होता तो।
वह संसद में भ्रष्ट न्यायाधीशों या प्रधानमंत्रियों के हत्यारों या उनका भी जिन्होंने करेन्सी नोटो से भरे संदूकों को प्रधानमंत्री को रिश्वत दी थी का बचाव कर रहे होते।
वह एक स्वप्नदर्शी थे जो तब तक नींद में थे जब तक उनके अच्छे दोस्त चाऊ एन लाई ने उन्हें जगा नहीं दिया, भले ही भौण्डे ढंग से क्यों न हो।
और, निस्संदेह वह एक शानदार कलाकार थे जो अपने जीवन भर हेमलेट की भूमिका निभाते रहे और तब भी आभास देते रहे कि वह तो जूलियस सीज़र की भूमिका निभा रहे हैं।
लेकिन इस अधिकांश, और जिसे किसी माप में मापा न जा सके, तो वह हमारे महानतम और सर्वाधिक सफल मध्यस्थ थे, जिन्होंने हमारे लिए बहुप्रतीक्षित हमारी अपनी नियति से हमारा मिलन कराया:
हालांकि हमारी नियति से मिलन तय करते समय, इसे देश के निर्माता नेहरू ने देशभर में कुछ लैम्प पोस्ट खड़े करवाए – हमें बिजली देने के लिए नहीं अपितु भ्रष्टों, कालाबाजारियों और हवाला व्यापारियों को लटकाने के लिए:
उन्हें लटका दो, यदि उन्हें हम खोज सकें। क्योंकि नेहरू सोचते थे कि यह घास के ढेर में सुई ढूंढने जैसा काम होगा, इतना कठिन और इतना अविश्वसनीय। क्योंकि वह सोचते थे कि एक स्वतंत्रता के लिए इतना कड़ा संघर्ष किया गया और इतनी मुश्किल से जीता गया, को इतनी आसानी से नष्ट या बेरंग नहीं किया जा सकता और वह भी उन लोगों द्वारा जिन्होंने इसे बनाया है।
और मात्र 50 वर्षों में इस घास के ढेर की कायापलट होकर यह एक खरपतवार की तरह से आकार और क्रूरता में बढ़ा है, जोकि राष्ट्र की भावना और संवेदनाओं पर प्रहार कर रहा है। 50 वर्षों में, लैम्प पोस्ट एक प्रकार से बदल गई प्रतीत होती हैं उन्हीं राजनीतिज्ञों द्वारा परिवर्तित कर दिया गया है जो इन पर लटकाए जाने वाले थे।
पचास वर्ष पश्चात् अब, जब हम अपने भविष्य से प्रथम महान अर्ध्दरात्रि की मुलाकात का समारोह कर रहे हैं, तब मैं नेहरू को ही उदृत करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूं लेकिन अलग संदर्भ में और किसी अन्य के संदर्भ में – उन अंग्रेजों के बारे में जिन्हें स्वयं नेहरू ने अपने अनोखे अंदाज में स्वतंत्रता के सुदर फूल के रूप में पुकारते थे।
नेहरू ने एक एक ऐसी ही अवसर पर कहा था ”मैं जानता हूं कि ब्रिटिश साम्राज्य में सूर्य क्यों नहीं कभी अस्त होता, क्योंकि ईश्वर अंधेरे में किसी अंग्रेज पर कभी भरोसा नहीं करता।” यह एक निष्कपट विचार है: क्या हमने किसी पर इतना ज्यादा विश्वास नहीं किया जब हम उस अर्ध्दरात्रि की मुलाकात हेतु गए? शायद, हमें यह मुलाकात एक लैम्प पोस्ट के नीचे करनी चाहिए थी जिस पर प्रकाश आ रहा होता।
भारत के एक परमाणु शक्ति बनने पर बाला का टिप्पणियां समान रुप से महत्वपूर्ण हैं, इस लेख का उपशीर्षक है: ”जब वृहत्काय जगा: भारत एक परमाणु शक्ति के रुप में” (When a Giant Wakes up: India as a Nuclear Power)। इसमें लेखक कहते हैं:
अमेरिका के 1500 या रुस के 700 अथवा चीन के 45 विस्फोटों की तुलना में भारत के पांच परमाणु विस्फोटों से आखिर दुनिया में भूकम्प और कूटनीतिक रेडियोधर्मिता पैदा क्यों होनी चाहिए। संभवतया, इसका उत्तर तथाकथित महाशक्तियों के पूर्वाग्रह और भेदभाव वाली मानसिकता में ज्यादा न होकर हमारे अपने सभ्यतागत डीएनए और हमारे लोगों तथा उनके नेताओं-राजनीतिक, सामाजिक और यहां तक कि धार्मिक-की वंशगत भीरुता में है।
हिन्दूइज्म को एक पराजयवादी या एक शांतिवादी जीवन जीने के रुप में गलत परिभाषित करने ने हमारे राष्ट्र-राज्य को स्वयं हिन्दुइज्म की तुलना में ज्यादा नुक्सान पहुंचाया है।
यह अपने आप में साफ करता है कि क्यों पूरी दुनियाभर में थरथराने वाले भूकम्प आया जब यह राष्ट्र, जिसे सदियों से सुस्त शरीर और कमजोर भावना मानकर चला जाता है, जब खड़े होने और अपने जीवन तथा सम्पत्ति का रक्षक बनने का निर्णय किया-जैसाकि 1974 में भारत के पहले परमाणु विस्फोट के समय हुआ।
जब श्रीमती गांधी ने यह निर्णय किया तब वह परमाणु हथियारों और दुनिया पर प्रभुत्व रखने वाले, माने जाने वाले कुछ राष्ट्रों के विरुध्द मात्र खड़ी नहीं हुई थीं। उनकी कोशिश, देश की शांतिवादी परम्परा में व्यवहारगत परिवर्तन लाने की एक बहादुरी वाला प्रयास था। दुर्भाग्य से, यद्यपि 24 वर्ष पूर्व उनका पोखरण विस्फोट कोई ठोस व्यवहारगत परिवर्तन नहीं ला पाया, क्योंकि मुख्य रुप से वह स्वयं, चुनौतियां का सामना करने हेतु राष्ट्र की अन्तर्निहित शक्ति के बारे में अनभिज्ञ थीं।
यह तथ्य कि श्रीमती गांधी का आग्रह कि 1974 का परीक्षण एक शांतिपूर्ण विस्फोट था न कि एक बम-सिर्फ दर्शाता हे कि यह ठोस आधार के अभाव में मात्र एक दिखावा था।
बाद के 24 वर्ष, पहले पोखरण विस्फोट को एक पुरातत्व संग्रह में रखने वाले; और ‘नेक‘ माफ कर देने वाले हिन्दुओं की भांति, हम हमारे राष्ट्र के अतीत के स्वयं के क्षूद्र और बचे-खुचे अवशेष की तरह बने रहे।
जब मई 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी ने किया वह हमें इस पराजित मानसिकता वाली नींद से झकझोर और हमारे राष्ट्रीय गौरव का पुन: दृढ़ता से घोष था। स्वाभाविक रुप से परमाणु मोर्चेबंदी वाले खुश नहीं हुए।
निस्संदेह, सभी एक अच्छे व्यक्ति को पसंद करते हैं लेकिन सभी दृढ़ व्यक्ति का सम्मान करते हैं। अभी भी सभी एक अच्छे ओर दृढ़ व्यक्ति को प्रेम ओर सम्मान करते हैं। एक नेक बृहकाय बच्चों के हीरो का रोमांटिक विचार होने के साथ-साथ व्यस्कों की दुनिया का भी सपना है।
चौबीस वर्ष पश्चात्, अटल बिहारी वाजपेयी ने इसे एक असली हथियार के रुप में बदल दिया है जो राष्ट्र की रक्षा सभी शत्रुओं-चाहें वे असली हों थी माने जाने वाले-से करेगा। बिल क्लिंटन और नवाज शरीफ ने इसे पसंद नहीं किया।
वाजपेयी इन सज्जनों को खुश करने के लिए ‘नेक‘ इंसान बन सकते थे। लेकिन यह एक तथ्य है कि एक नेक इंसान को अक्सर भू-राजनीति की झुलसाने वाली वास्तविकताओं से सामना करना पड़ता है। और वाजपेयी इसे उसी तरह से समझते थे जैसाकि उनकी स्थिति वाले व्यक्ति को पता है, यदि आज भी इस्राइल जिंदा है तो एक यहूदी राष्ट्र होने के नाते, जिसने शुरु से ही एक ‘नेक इंसान‘ न बनने का फैसला किया।

प्रेजिडेंट ओबामा ने ५०००डेली पॉइंट्स ऑफ़ लाइट अवार्ड स्वयम सेवी संस्था आउटरीच इंक को दिया

प्रेजिडेंट ओबामा ने ५०००डेली पॉइंट्स ऑफ़ लाइट अवार्ड स्वयम सेवी संस्था आउटरीच इंक को दिया

प्रेजिडेंट ओबामा ने ५०००डेली पॉइंट्स ऑफ़ लाइट अवार्ड स्वयम सेवी संस्था आउटरीच इंक को दिया

स्वैछिक सेवा भावना का आदर करने और उसे बढ़ावा देने के उद्देश्य से स्थापित अमेरिकोर्प्स [ AmeriCorps ] के व्हाइट हाउस में आयोजित कार्यक्रम में अमेरिकोर्प्स के संस्थापक [ पूर्व ] बुश और वर्तमान राष्ट्रपति बराक ओबामा एक साथ इकट्ठा हुए| इस अवसर पर दोनों राष्ट्रपतियों द्वारा आउटरीच इंक.के संस्थापकों को ५०००डेली पॉइंट्स ऑफ़ लाइट अवार्ड प्रदान किया गया| [ 5,000th Daily Point of Light Award to Outreach Inc. co-founders] गौर तलब है कि[1990 and 1993 ]जॉर्ज एच डब्लू बुश ने अपने कार्यकाल में देश और विदेशों में स्वैछिक सेवा भावना को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से अमेरिकोर्प्स के आलावा अनेको राष्ट्रीय सेवा संस्थाओं को स्थापित कराया था और १२०० डेली पॉइंट्स ऑफ़ लाइट अवार्ड्स भी दिए |इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए ५००० वां पुरूस्कार दिया गया| दोनों राष्ट्रपतियों द्वारा केथी हैमिलटन तथा फ्लॉयड हैमर [ Kathy Hamilton and Floyd Hammer of Union, Iowa ] की सेवाओं की प्रशंसा भी की
हैमिलटन और हैमर ने लगभग १० वर्ष पूर्व तंज़ानिया में एच आई वी/एड्स + भूख के विरुद्ध उल्लेखनीय स्वैछिक सेवायें प्रदान की थी| इसी युगल ने आउटरीच इंक. नामक संस्था की स्थापनाकरके अमेरिका सहित १५ देशों में २३० मिलियन बच्चों तक निशुल्क भोजन मुहैय्या करवाया | वर्तमान राष्ट्रापति बराक ओबामा ने भी इसके प्रति प्रतिबद्धता जताते हुए अमेरिकोर्प्स के साईज को ७५००० स्वयम सेवको से २५०००० तक लेजाने का संकल्प लिया| सोमवार को इंट्राजेंसी टास्क फाॅर्स [interagency task force ]का गठन के लिए एलान भी किया गया|

भारतीय जन संपर्क संस्थान को राष्ट्रीय महत्त्व देने के लिए सरकार अधिनियम ला सकती है

सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्री मनीष ति‍वारी ने आज अपने मंत्रालय की सलाहकार समिति की बैठक में भारतीय जन संपर्क संस्‍थान (आईआईएमसी) की गतिविधियों के बारे में चर्चा की।श्री तिवारी की अध्यक्षता में आयोजित इस बैठक के सदस्‍यों को लेवेसन रिपोर्ट की भारतीय संदर्भ में प्रासांगिकता के बारे में जानकारी दी गयी।
सदस्‍यों का स्‍वागत करते हुए श्री तिवारी ने कहा कि मौजूदा मीडिया माहौल को देखते हुए आईआईएमसी[ IIMC ] जन संपर्क के क्षेत्र में बेहतर शिक्षा देने के लिए एक कार्यक्रम तैयार कर रहा है। मंत्री महोदय ने बताया कि सरकार एक अधिनियम के जरिए आईआईएमसी को राष्‍ट्रीय महत्‍व का संस्‍थान घोषित करने पर विचार कर रही है।
इस अवसर पर आईआईएमसी के महानिदेशक ने समिति के सदस्‍यों के समक्ष संस्‍थान की प्रमुख गतिविधियों और भावी योजनाओं को प्रस्‍तुत किया। सदस्‍यों ने उर्दू पत्रकारिता शुरू करने के संस्‍थान के कदमों की सराहना की और इस संबंध में आवश्‍यक सुधार करने की सलाह दी। सदस्‍यों ने यह भी कहा कि विभिन्‍न क्षेत्रीय केन्‍द्रों में क्षेत्रीय भाषाओं में भी पाठ्यक्रम चलाए जाने चाहिए।
समिति के सदस्‍यों ने इस बात पर जोर दिया कि पत्रकारिता के पाठ्यक्रम में स्‍वतंत्रता संग्राम, संस्‍कृति और पत्रकारिता में आदर्शों के निर्वहन का भी समावेश किया जाए।
बैठक में डॉ. अनूप कुमार साहा= श्री रमाशंकर राजभर+ डॉ. संजय जायसवाल,+श्री शत्रुघ्‍न सिन्‍हा+ श्री अहमद सईद मलीहाबादी+ डॉ. बरुन मुखर्जी+ श्री भरत कुमार राउत+श्री एम.पी. अच्‍युतन+ श्री मोहम्‍मद अदीब + श्री प्‍यारीमोहन महापात्रा आदि उपस्थित थे।

युवाओ में चरित्र निर्माण को समर्पित एन सी सी के लिए जूनियर कैडिटस का चयन किया गया

[मेरठ]युवाओ में चरित्र निर्माण को समर्पित एन सी सी के लिए जूनियर कैडिटस का चयन किया गयायुवाओ में चरित्र,अनुशासन,लीडरशिप,आपसी सदभावना विकसित करने ,देश प्रेम की भावना और देश के लिए मानव संसाधन तैयार करने तथा उनको एक ऐसा वातावरण तैयार करना जिससे वे सैन्य सेवा में अपना भविष्य बना सकने के लिए आज एन.ए.एस.इन्टर कालिज में जूनियर कैडिटस का चयन किया गया।
इस अवसर पर 72 यू0पी0 बटालियन के कमान्डिग आफिसर कर्नल हरिश चन्डोक नें सभी कैडिटस को 1948 से देश भर में 13 लाख एन.सी.सी. कैडिस को मिल रहे लाभ भी बताये। सुबेदार मेजर उम्मेद सिंह,सुरेन्द्र कुमार ,विनोद कुमार,उपेन्द्र कुमार ने सी0ओ0 के निर्देशन में कैडिटस का चयन किया।
इस अवसर पर प्रधानाचार्य अशोक कुमार शर्मा,आभ शर्मा और चीफ आफिसर दीपक शर्मा भी उपस्थित रहें।

हम सभी एक ही प्रभु के अंश हैं, इसीलिए प्रभु का जानने का हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है:संत राजिंदर सिंह जी महाराज

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज फ़र्माते हैं कि अध्यात्म का अर्थ है यह जानना कि बाहरी नामों और लेबलों के नीचे हम सब वास्तव में एक ही प्रभु का अंश हैं।इसीलिए प्रभु का जानने का हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है क्यूंकि हम सब एक ही बड़े परिवार के सदस्य हैं।
अध्यात्मिक विज्ञान और सावन कृपाल रूहानी मिशन के प्रमुख संत राजिंदर जी महाराज का कहना है कि जब हम इस दृष्टिकोण के साथ जीने लगते हैं, तो हमारे अंदर कोई पूर्वाग्रह या भेद-भाव नहीं रहता और हम वो सभी दीवारें तोड़ डालते हैं जो एक इंसान को दूसरे से अलग करती हैं। हम महसूस करते हैं कि हम सब आत्मा के स्तर पर एक हैं। इस एकता और जुड़ाव का अनुभव करने से हम एक-दूसरे का ख़याल रखने लगते हैं; हम एक-दूसरे की सेवा व सहायता करने लगते हैं। हमारा दृष्टिकोण व्यापक हो जाता है और हम सभी इंसानों के साथ करुणा से पेश आते हैं।
साइंस आफ़ स्पिरिच्युएलिटी’ तथा ‘सावन कृपाल रूहानी मिशन’ के अध्यक्ष संत राजिन्दर सिंह जी महाराज अध्यात्म के द्वारा आंतरिक और बाह्य शांति का प्रसार करने के अपने अथक प्रयासों के लिये अंतर्राष्ट्रीय रूप से जाने जाते हैं। विश्व भर में उनके द्वारा किये गये महान् योगदानों के लिये उन्हें प्रदत्त अनेक पुरस्कारों व सम्मानों में सम्मानार्थ डाक्टरेट की पाँच उपाधियाँ शामिल हैं।भारत में जन्मे तथा वैज्ञानिक के रूप में शिक्षित संत राजिन्दर सिंह जी महाराज अध्यात्म और विज्ञान दोनों की गूढ़ समझ रखते हैं। उन्होंने अपनी आध्यात्मिक शिक्षा भारत के दो महान् पूर्ण संतों – संत कृपाल सिंह जी महाराज (1894-1974) व संत दर्शन सिंह जी महाराज (1921-1989)- के द्वारा प्राप्त की।
यूनाइटेड स्टेट्स आफ़ अमेरिका से विज्ञान में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त करने के पश्चात् उन्होंने बीस वर्ष तक विज्ञान एवं संचार के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। अध्यात्म और विज्ञान दोनों का इतना गहरा ज्ञान होने के कारण वे पुरातन व गूढ़ आध्यात्मिक शिक्षाओं को आज की सरल, स्पष्ट एवं तार्किक भाषा में समझाने में सफल रहे हैं।संत जी महाराज सेवा कार्यों के लिए दान पर निर्भर नही है वरन अपनी व्यतिगत कमाई लगाते हैं |

दिल से पत्रकारिता और राजनीती करने वाले बेहद दुर्लभ हैं :एल के अडवाणी के ब्लॉग से

एन डी ऐ के पी एम् इन वेटिंग और वरिष्ठ पत्रकार[अब ब्लॉगर] लाल कृष्ण आडवाणी ने अपने नवीनतम ब्लॉग के पश्च्य लेख[ Tailpiece ] में कहा है कि दिमाग के दिशा निर्देशों पर केवल निजी स्वार्थ पूर्ती के बजाय दिल की पुकार पर पत्रकारिता और राजनीती करने वाले बेहद दुर्लभ हैं | पी पी बालाचंद्रन की पुस्तक ऐ व्यू फ्रॉम रायसीना हिल्स [“A view from the Raisina Hill.”]के अध्याय आर्ट +कल्चर+और मीडिया [“Art, Culture and Media”]. में उल्लेखित कार्टूनिस्ट रंगानाथ [अब स्वर्गीय] की जीवन के उतार चडाव के हवाले से कहा है कि रंग ने पत्रकारिता में अगर नाम कमाया और आज हम रंगा को याद करते हैं उसकी कमी को महसूस करते हैं तो केवल इसीलिए कि रंगा ने जीवन पर्यंत पोलिटिकल कार्टूनों में हमेशा अपने दिल के भावों से पाठकों का दिल जीता|.वर्तमान में क्रिकेटर द्वारा मैच फिक्सिंग या स्पॉट फिक्सिंग के द्वारा दौलत कमाए जाने के समाचार फ्रंट पेज पर छाते हैं|
किताब में बाते गया है कि महात्मा गाँधी + नेल्सन मंडेला+यास्सेर अराफात+ मोहम्मद अली+मदर टेरेसा+ मारग्रेट थेचर +बिल क्लिंटन +रंगा की अमूल्य २००० कृतियाँ यदि बेच दी जाती तो रंगा भी करोड़ों डॉलर्स का मालिक हो सकता था|दुर्भाग्य से वर्तमान में पत्रकारिता+राजनीती के अलावा दुसरे छेत्रों में भी रंगा जैसे समर्पित लोग बेहद दुर्लभ हैं| रंगा वाकई प्रशंसा के पात्र हैं

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ओत्तावियो क्वात्त्रोची की मृत्यु १९८७ के अनैतिक बोफोर्स काण्ड का तिरस्कारपूर्वक अंत है:आप पार्टी

बोफोर्स तोपों में दलाली को लेकर जिसके नाम के गोले राजीव गाँधी [अब स्वर्गीय]पर चलाये जा रहे थे उस ओत्तावियो क्वात्रोची [ Ottavio Quattrocchi ] का शनिवार को इटली के मिलान में हार्ट अटैक से निधन हो गया है | इससे १९८७ के बोफोर्स दलाली के एक निंदनीय अध्याय का अंत हो गया है|इस पर टिपण्णी करते हुए आम आदमी पार्टी[आप]ने क्वात्त्रोची की मृत्यु को अनैतिक बोफोर्स काण्ड का तिरस्कारपूर्वक अंत बताया हैआप पार्टी का कहना है कि इस अकेले केस में केंद्र सरकार द्वारा लगातार पर्दा डाले रखने के बावजूद इसी केस के आधार पर स्विस बैंक से पहली बार इसकी डिटेल्स निक्लावाई जा सकी थी लेकिन इसके बावजूद अभी तक किसी को सजा नहीं हुई है|आठवें दशक से लगातार सी बी आई + तत्कालीन फॉरेन मिनिस्टर + नयायालय +के हस्तक्षेप और फिर क्वात्त्रोची को देश छोड़ने की इजाजत देकर केस को रिश्वत के बजाय धोखा धडी का केस बना दिया गया|पहले उसे देश से बाहर जाने दिया गया फिर उसके वापिसी के लिए नाटक किये गए| अब दलाली के क्यू [ Q ] नाम से कुख्यात इस मुख्य आरोपी की मृत्यु से केस की सभी गोपनीय जानकारी भी दफन हो गई है|
इससे एक बात तो साफ़ हो गई है कि देश के क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को धनवान और शक्तिशाली के हित में अपराधिक रूप में उपयोग किया जा रहा है|
इसी परिपेक्ष्य में आप पार्टी ने लोक पल के गठन की मांग को पुनः उठाते हुए जुडिशियल सिस्टम में सुधार को आवश्यक बताया है|