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Category: Religion

सच्चे गुरु – भक्त के समक्ष कामवासनाएँ ठहरती नहीं हैं .

लगा रहे सतज्ञान सों , सबही बंधन तोड़
कहैं कबीर वा दास सौं, काल रहै हथजोड़
भाव : कबीर दास जी शिष्य की महिमा बताते हुए कहते हैं , जिसने विषयों से अपने मन को हटा लिया है,
जो सांसारिक बन्धनों से रहित है और सत्य – स्वरूप में जिसकी दृढ निष्ठा है , ऐसे गुरु – भक्त के
सामने तो काल भी सिर झुकाए हुए रहता है अर्थात – मन की लम्बी दौड़ और काम वासना ही
मनुष्य का काल है . एक सच्चे गुरु – भक्त के सामने कामवासनाएँ या कल्पनाएँ ठहरती ही नहीं हैं .
कबीर संत थे या दास यह हमेशा चर्चा का विषय रहा है|वास्तव में कबीर संत और दास दोनों ही थे|उन्होंने एक जुलाहे परिवार में परवरिश पाई थी मगर विचारों से क्रांतिकारी थे उन्होंने एक धर्म या कुरीतिओं में बंधे रहना कभी स्वीकार नहीं किया| संत कबीर की भाषा को पञ्च मेल खिचडी भी कहा जाता है|हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मो के अनुयायियों ने उन्हें अपनाया है यहाँ तक की वर्तमान में सिख धर्म में भी कबीर की अमृत अमर वाणी का आदर किया गया है|
संत कबीर वाणी
प्रस्तुती राकेश खुराना

सद्विचारों की रस्सी से मोह माया के सागर से बाहर निकला जा सकता है

तन रहीम है कर्म बस , मन रखो ओहि ओर
जल में उलटी नाव ज्यों , खैंचत गुन के जोर
अब्दुर्रहीम खानखाना
अर्थ : कवि रहीम कहते हैं कि शरीर तो कर्म फल के आधीन है परन्तु मन को प्रभु भक्ति
की ओर लीन करके रखना चाहिए . जैसे – जल में नाव के उलट जाने पर उसे रस्सी से
खींचकर ही बचाया जाता है .
भाव : हमारा यह शारीर हमारे कर्म फल को ही हमेशा प्राप्त करता है . हम जैसा करते हैं ,
ईश्वर हमें वैसा ही फल देता है . ऐसे प्रभु के प्रति सदैव भक्ति – भाव बनाए रखना चाहिए .
जिस प्रकार जल में नाव के उलट जाने पर उसे रस्सी से बांधकर जल से बाहर निकालते हैं .
उसी प्रकार यदि संसार रुपी भवसागर की मोह – माया में हमारा मन लिप्त हो जाए तो हमें
दृढ़ता से अपने मन के चंचल स्वभाव पर अंकुश लगाना चाहिए और उसे सद्विचारों की रस्सी
से बांधकर इस मोह – माया से बाहर खींचकर लाना चाहिए , तभी हम अपने जीवन को सफल
बना सकते हैं अर्थात चंचल मन पर अंकुश रखना परम आवश्यक है
संत रहीम वाणी
(अब्दुल रहीम ख़ान-ए-ख़ाना[ १७-१२-१५५६-१६२७],मुग़ल बादशाह अकबर के नव रत्नों में से एक थे| जहाँ इन्हें इनके दोहों के लिए हिंदी साहित्य में इतिहास में श्रेष्ठ स्थान दिया गया है वहीं आस्ट्रालोजी पर उनकी किताब भी मील का पत्थर है|इन्ही के नाम पर पंजाब के नवांशहर में खानखाना गावं है|इनकी ननिहाल में कृष्ण भक्ति की जड़े बताई जाती है|
प्रस्तुती राकेश खुराना

गणेश चतुर्थी पर शोभा यात्रा

गणेश चतुर्थी पर धार्मिक आयोजन शुरू हो गए हैं |मेरठ में कचहरी परिसर से आज विघ्न विनाशक गणपति बप्पा की शोभा यात्रा धूम धाम से निकाली गई|

बुल्ल्हा शौह नूं सोई पावे , जेह्ड़ा बकरा बणे कसाई दा

तेरा नाम तिहाई दा, साईं तेरा नाम तिहाई दा
बुल्ल्हे नालों चुल्ल्हा चंगा , जिस पर ताम पकाई दा
रल्ल फकीरां मजलस कीती , भोर भोर खाई दा
रंगड़े वालों खिंगर चंगा , जिस पर पैर घिसाई दा
बुल्ल्हा शौह नूं सोई पावे , जेह्ड़ा बकरा बणे कसाई दा
साईं बुल्लेशाह
सतगुरु परमात्मा का को प्राप्त करने का मार्ग अत्यंत कठिन है . इस मार्ग पर चलने से पहले अपने अहंकार और
स्वार्थ का त्याग करना पड़ता है. बुल्लेशाह इसी को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि हे सतगुरु परमात्मा ! हम बस तेरे
नाम का ही सुमिरन करते हैं .
बुल्ले से तो यह चूल्हा अच्छा है , क्योंकि इस पर कम – से – कम रोटी तो पकती है जिसे फकीर एकत्र होकर अत्यंत
संतोष से बांटकर खा लेते हैं .
अहंकारी से तो वह पत्थर अच्छा है जिस पर पैर घिसकर मैल साफ़ कर लिया जाता है परन्तु अहंकार तो रोज नई
गंदगी इस मन में एकत्र करता है .
सतगुरु परमात्मा को वही प्राप्त कर सकता है जो कसाई का बकरा बनने के लिए तैयार हो अर्थात सतगुरु परमात्मा
को प्राप्त करने के लिए ‘मैं ‘ को मिटाना पड़ता है क्योंकि परमात्मा का मिलन ही जीवन के चरम लक्ष्य की प्राप्ति है .

फल इच्छा बिना कर्म करने से ईश्वर प्राप्ति सरल होती है


न में पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किंचन
नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि
श्रीमदभगवदगीता
भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं -हे पार्थ ! मुझे तीनों लोकों में न तो कुछ कर्तव्य है
और न कोई प्राप्त करने योग्य वस्तु अप्राप्य है , फिर भी मैं कर्तव्य में लगा रहता हूँ .
व्याख्या : भगवान भी अवतार काल में सदा कर्तव्य , कर्म में लगे रहते हैं , इसलिए जो साधक फल की
इच्छा से रहित और आसक्ति से रहित होकर सदा कर्तव्य , कर्म में लगा रहता है , वह आसानी
से भगवान को प्राप्त कर लेता है.
भगवद गीता
प्रस्तुती राकेश खुराना

बुल्ल्हे नालों चुल्ल्हा चंगा , जिस पर ताम पकाई दा

तेरा नाम तिहाई दा, साईं तेरा नाम तिहाई दा
बुल्ल्हे नालों चुल्ल्हा चंगा , जिस पर ताम पकाई दा
रल्ल फकीरां मजलस कीती , भोर भोर खाई दा
रंगड़े वालों खिंगर चंगा , जिस पर पैर घिसाई दा
बुल्ल्हा शौह नूं सोई पावे , जेह्ड़ा बकरा बणे कसाई दा
साईं बुल्लेशाह
सतगुरु परमात्मा का को प्राप्त करने का मार्ग अत्यंत कठिन है . इस मार्ग पर चलने से पहले अपने अहंकार और
स्वार्थ का त्याग करना पड़ता है. बुल्लेशाह इसी को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि हे सतगुरु परमात्मा ! हम बस तेरे
नाम का ही सुमिरन करते हैं .
बुल्ले से तो यह चूल्हा अच्छा है , क्योंकि इस पर कम – से – कम रोटी तो पकती है जिसे फकीर एकत्र होकर अत्यंत
संतोष से बांटकर खा लेते हैं .
अहंकारी से तो वह पत्थर अच्छा है जिस पर पैर घिसकर मैल साफ़ कर लिया जाता है परन्तु अहंकार तो रोज नई
गंदगी इस मन में एकत्र करता है .
सतगुरु परमात्मा को वही प्राप्त कर सकता है जो कसाई का बकरा बनने के लिए तैयार हो अर्थात सतगुरु परमात्मा
को प्राप्त करने के लिए ‘मैं ‘ को मिटाना पड़ता है क्योंकि परमात्मा का मिलन ही जीवन के चरम लक्ष्य की प्राप्ति है

बुल्ले शाह दी काफी

बादशाह औरंगजेब के शासन काल में सय्यद परिवार में लाहौर के कसूर पंडोकी गावं में १६८० में जन्मे अब्दुलाह शाह कादिर को बाबा बुल्ले शाह भी कहा जाता है|बाबा ने पंजाबी गूड रहस्यवाद की अभिव्यक्ति पर कमांड हासिल की और विश्व के सर्वश्रेष्ठ सूफी का रुतबा हासिल किया|इनकी मृत्यु की त७८ वर्ष में हुई बताई जाती है\

प्रस्तुतकर्ता राकेश खुराना .

बादशाह औरंगजेब के शासन काल में सय्यद परिवार में लाहौर के कसूर पंडोकी गावं में १६८० में जन्मे अब्दुलाह शाह कादिर को बाबा बुल्ले शाह भी कहा जाता है|बाबा ने पंजाबी गूड रहस्यवाद की अभिव्यक्ति पर कमांड हासिल की और विश्व के सर्वश्रेष्ठ सूफी का रुतबा हासिल किया|इनकी मृत्यु की त७८ वर्ष में हुई बताई जाती है\

पाकिस्तान में हिन्दू मंदिर के ध्वस्तीकरण पर अदालती रोक

पकिस्तान की सिंध हाई कोर्ट ने एक नजीर पेश करते हुए कराची बंदरगाह के इलाके में २०० साल पुराने हिन्दू लक्ष्मी नारायण मंदिर के ध्वस्तीकरण के आदेश पर रोक लगा दी है|मंदिर के ध्वस्तीकरण के लिए कराची पोर्ट ट्रस्ट द्वारा कार्यवाही की जा रही है|
चीफ जस्टिस मुशीर आलम ने नजीर पेश करते हुए कोर्ट के नाजीर को मंदिर के निरीक्षण के आदेश दिए हैं|नजीर द्वारा एक सप्ताह में यह रिपोर्ट दी जानी है|
गौरतलब है केयह मंदिर देश विभाजन से पहले बना था यहाँ चन्द्ररात +रक्षा बंधन गणेश पूजा आदि उत्सव मनाये जाते है| यहाँ मृत्यु के पश्चात के संस्कार भी कराये जाते हैं|यहाँ रोजाना लगभग २५० लोग विजिट करते हैं आर्थिक तंगी से जूझ रहे इस एतिहासिक मंदिर का बाहरी भवन खंडहर होता जा रह है|
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दैविक प्रेम अमरत्व का प्रतीक है.

प्रेम भक्ति को पैडो न्यारों, हमकू गैल लगा जा.

संत मीराबाई जी सतगुरु से प्रार्थना करती हुई कहती है, हे सतगुरु! प्रेम और
भक्ति का मार्ग मेरे लिए नितांत अजनबी और कठिन है. तुम मुझे इस पथ पर लगा
दो ताकि मैं सरलता से परमात्मा के दर्शन पा सकूँ.
प्रेम कि महान मूर्ति मीराबाई के जीवन से हमें यह सन्देश मिलता है कि दैहिक प्रेम
क्षणभंगुर है जबकि दैविक प्रेम अमरत्व का प्रतीक है. क्योंकि सच्चे प्रेम को तो
परमात्मा के स्वरुप में समाहित हो जाना है. प्रभु से एकाकार होना ही सबसे बड़ी
आराधना है और उसका एकमात्र रास्ता प्रेम है.
संत मीरा बाई वाणी

ज़िन्दगी मिली है दोस्ती के वास्ते= संत दर्शन सिंह

संत दर्शन सिंह जी महाराज के देश – विदेश में किए गए प्रवचनों से लिया गया एक अंश

ज़िन्दगी हमको मिली है दोस्ती के वास्ते
जान तक दे दो मुहब्बत की ख़ुशी के वास्ते
रूहानी मिशन सावन आश्रम के संत दर्शन सिंह जी महाराज
हमारी जो जिंदगी है उसका ये मकसद है कि हम दूसरों से हमदर्दी करें , दोस्ती करें , दूसरों के दुःख – दर्द हम बांटें
और अगर हम इतिहास के पन्ने पलटें , तारीखों पर नजर डालें तो हम देखेंगे कि जितने भी महापुरुष हुए हैं उन सबने हमारे
दुखों और दर्दों को बांटने में क़ुरबानी दी है . प्रभु को पाने का जो रास्ता है , ये क़ुरबानी का रास्ता है परम संत कृपाल सिंह जी
महाराज अक्सर फ़रमाया करते थे कि प्रेम निष्काम सेवा और त्याग करना जनता है .इशु -मसीह के जीवन को देखिए वो सूली
पर चढ़ गए , शम्स तरवेज की खाल खींच ली गई. पंचम पातशाह श्री गुरु अर्जुन देव जी महाराज को गर्म तवे पर बिठाया गया .
उनके दोस्त हजरत मियां मीर से ये बात देखी नहीं गई और उन्होंने गुरु अर्जुन देव जी महाराज से कहा , अगर आप इजाजत दें
तो मैं खानदाने मुगलिया की ईंट से ईंट बजा दूँ ,तो सच्चे पातशाह ने फ़रमाया – दोस्त , क्या ये मैं नहीं कर सकता ? मगर हमारा
जो रास्ता है वो राज़ी – बा – रज़ा रहने का है वो ‘तेरा भाणा मीठा लागे ‘ का मार्ग है और यही शब्द उच्चारण करते हुए उन्होंने
प्राण त्याग दिए

आश्रम की शोभा संत महापुरुष मंदिरों की शोभा विग्रहों से है

श्री रामशरणम् आश्रम, गुरुकुल डोरली , मेरठ के परमाध्यक्ष

पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी के प्रवचन का एक अंश.

संतजन जिज्ञासुओं को समझाते हुए कहते हैं कि संसार में दो प्रकार के मंदिर हैं. एक तो चल मंदिर तथा दूसरे अचल मंदिर.
संत महापुरुष चल मंदिर अर्थात चलते फिरते मंदिर हैं. एवं अचल मंदिर ईंट तथा पत्थरों से बने मंदिर हैं. यद्यपि दोनों
ही भक्ति के साधन हैं. परन्तु चल मंदिरों से अचल मंदिरों की शोभा है.

भक्तजन आश्रमों में संत महापुरुषों के दर्शन को जाते हैं , अगर किसी आश्रम में संत महापुरुष ही न हों
तो मनुष्य दीवारों के दर्शन करने नहीं जाते हैं. अतः आश्रमों की शोभा संत महापुरुषों से ही है.

इसी प्रकार भक्तजन जब मंदिर में जाते हैं तो भगवन के स्वरुप, देव प्रतिमा के सामने नतमस्तक होते हैं.
ऐसा करने से भक्तजनों को आत्मिक प्रसन्नता प्राप्त होती है. अगर मंदिर में देव प्रतिमा नहीं हो तो
मनुष्य किसके दर्शन करने जाएगा? अतः मंदिरों की शोभा देव प्रतिमाओं से ही है.