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Category: Poetry

राम – नाम की धुन मात्र से दुःख , पीड़ा देने वाले शोक – संकट भाग जाते हैं

राम – नाम जो जन मन लावे ,
उस में शुभ सभी बस जावें ।
जहाँ हो राम – नाम धुन नाद ,
भागें वहाँ से विषम – विषाद ।

राम – नाम की धुन मात्र से दुःख , पीड़ा देने वाले शोक – संकट भाग जाते हैं ।

भाव : जो व्यक्ति अपने मन में राम – नाम को आसीन कर लेता है ,उसमें सभी प्रकार की धन्यता का वास हो जाता है । उसे सौभाग्य , सुख , समृद्धि अर्थात सब प्रकार के आशीर्वाद प्राप्त हो जाते हैं । जहाँ राम – नाम की धुन गूंजती है , वहां से दुःख , पीड़ा देने वाले शोक – संकट भाग जाते हैं ।
श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज द्वारा रचित अमृत वाणी का एक अंश
प्रस्तुति राकेश खुराना

असली पाँव वही हैं जो अपने प्रभु प्रीतम की याद में नाच उठते हैं

चरण सोई जो नचत प्रेम से , कर सोई जो पूजा ।
सीस वही जो निवे साधु को , रसना और न दूजा।

Rakesh Khurana

भाव : हम इस संसार की विषय – वस्तुओं को एकत्र करने और इन्हीं सब की पूर्ति में लगे हुए , कई तरह के नाच नाचते रहते हैं । परन्तु जो ईश्वर के जिज्ञासु होते हैं , वे सदा ईश्वर के ध्यान में मगन रहते हैं । संत नामदेव जी कहते हैं कि हमारे असली पाँव वही हैं जो अपने प्रभु प्रीतम की याद में नाच उठें ।हमारे असली हाथ वही हैं जो अपने प्रभु प्यारे की पूजा में
लगें । सिर वही है जो किसी महापुरुष के चरणों में झुके और स्वयं को समर्पित कर दे उसे फिर किसी और तरफ देखने की जरुरत नहीं पड़ती ।हम फिर सिर्फ उस महापुरुष के शब्दों पर अमल करें , ऐसी ही धुन , लगन होनी चाहिए। सच्ची लगन हमेशा एक की ही होती है , और वह सदा अटल रहती है ।
संत नामदेव जी
प्रस्तुति राकेश खुराना

मेरठ में ट्रैफिक जाम का निजाम हर तरफ सुबहो शाम

मेरठ में ट्रैफिक जाम का निजाम

मेरठ में ट्रैफिक जाम का निजाम हर तरफ सुबहो शाम जाम का निजाम हर तरफ है
सुबहो दोपहर या फिर हो शाम
हर कोई है हलकान परेशान
चाहे ख़ास हो या हो आम
लेकिन बेफिक्र है हुकुमरान
मरकजी हो या फिर हो मेरठान
न कोई अपील न कोई दलील
सर दर्द और ब्लड प्रेशर
सबको हुआ बेहद आसान
क्योंकि कचहरी भी बनी है
ट्रैफिक जाम की रोजमर्रा की मेहमान

सतगुरु मेलों में नहीं जाता,पूजा नहीं करवाता ,भेंट नहीं लेता फिर भी प्रभु देन बांटता ही रहता है

साधो सो सतगुरु मोहिं भावै ।
सतनाम का भरि – भरि प्याला , आप पिवै मोहिं प्यावै ।
मेले जाय न महंत कहावै , पूजा भेंट न लावै ।
परदा दूरि करै आँखिन को , निज दरसन दिखलावै ।

Rakesh khurana on Sant kabir das ji

भाव : संत कबीर दास जी कहते हैं – हे साधु ! जो मेरा सतगुरु है , वो मुझे बहुत ही प्यारा लगता है , बहुत ही अच्छा लगता है ।सतगुरु मुझे इसलिए अच्छा लगता है, कि जो नाम का अमृत है , उसके प्याले भर – भर कर , एक तो वह खुद पीता है अर्थात वह खुद प्रभु में लीन हो जाता है और फिर यही नहीं वह मुझे भी पिलाता है , मुझे भी ईश्वर के नाम के साथ जोड़ता है ।
ऐसा सतगुरु मेलों में नहीं जाता , क्योंकि वह तो खुद परमात्मा के साथ जुड़ा हुआ है , बाहर की दुनिया की उसे कोई परवाह नहीं होती और न ही वह महंत की तरह से, पंडित की तरह से जीता है । न ही वह अपनी पूजा करवाता है , न ही भेंट में कुछ लेता है । ऐसा सतगुरु अपनी ही कमाई पर जीता है । वह प्रभु की देन को बिना किसी कीमत के औरों में बाँटता रहता है ।वह हमारी आँखों पर पड़े माया के परदे को हटाता है ।वह अपने दर्शन हमें अन्दर देते हैं । उस नूरी स्वरूप को हमारे साथ मिला देते हैं और इसी तरह हमें सचखंड तक पहुंचा देते हैं ।
संत कबीर दास जी
प्रस्तुती राकेश खुराना

ह्रदय की भूमि में नाम के बीज को अंकुरित और फलित होने के लिए सत्संग, सत के नाम की जल,खाद जरुरी है

[मेरठ]श्री रामशरणम आश्रम , गुरुकुल डोरली , मेरठ में प्रात:कालीन सत्संग के अवसर परपूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने अमृतमयी प्रवचनों की वर्षा करते हुए कहा

पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने की अमृतमयी प्रवचनों की वर्षा


देवो दयाल नाम देयो मंगते को , सदा रहूँ रंगराता मैं ।
सदा रहूँ रंगराता मैं , सदा रहूँ गुणगाता मैं ।
भाव : उस परिपूर्ण परमात्मा से साधकों , भक्तों ने उसकी कृपा की भिक्षा मांगी । वे परमात्मा से प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु ! तू दयालु है , मुझे अपने नाम की भिक्षा दो । तू दयाल होकर मेरे पाप कर्मों को न देख , जितने भी मेरे पाप कर्म हैं , तेरी कृपा से अधिक नहीं हैं । तू समर्थवान है , मुझे अपने नाम की ऐसी भिक्षा दे कि हर पल तेरे नाम की स्मृति बनी रहे और मुझे अपने रंग में ऐसा रंग दे कि हर पल तेरे गीतों को गाता रहूँ , गुनगुनाता रहूँ । मेरे अंत:करण में तेरे नाम की माला निरंतर चलती रहे ।
उपस्थित साधकों को समझाते हुए पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने कहा कि हमें सत्संगों में निरंतर आते रहना चाहिए । सत्संगों में नित नई प्रेरणाएँ मिलती हैं और हमारा मन परमात्मा के भजन में यत्नवान हो जाता है । बीज कितना ही उत्तम हो , उसको यदि जल एवं खाद न दी जाए , तो वह अंकुरित नहीं होता । इसी तरह हमारे ह्रदय की भूमि में संतों ने जो नाम रुपी बीज बोया है उसे जब सत्संग का जल , और सत के नाम की खाद मिलती है तो बीज अंकुरित और फलित होता है ।

इन्द्रियों पर एकाधिकार करने वाला जीवन में सुख , दुःख की कहाँ परवाह करता है

जेहि रहीम तन मन लियो , कियो हिए बिच भौन ।
तासों दुःख सुख कहन की , रही बात अब कौन ।

Rakesh khurana On Sant Rahim Das Ji

अर्थ : कवि रहीम का कथन है कि जिस व्यक्ति ने तन – मन पर अधिकार कर लिया है , उसने ह्रदय में स्थान बना लिया है ।ऐसे प्रेमी से अब दुःख , सुख कहने की कौन सी बात शेष रह गई है।
भाव : जिसने अपनी समस्त इन्द्रियों पर एकाधिकार कर लिया है अर्थात उन्हें अपने वश में कर लिया है , वही व्यक्ति ईश्वर के प्रेम को अपने ह्रदय में स्थान दे पाता है ।ऐसा ईश्वरीय प्रेम का दीवाना व्यक्ति , जीवन में सुख , दुःख की कहाँ परवाह करता है , वह तो समदर्शी हो जाता है। वह सभी में ईश्वर की छवि निहारना लगता है , सभी जीवों से प्रेम करने लगता है ।दुःख – सुख , सांसारिक मोह – माया और किसी तरह का लालच उसे कभी नहीं भरमाता ।
संत रहीम दास जी की वाणी
प्रस्तुती राकेश खुराना

सतगुरु सदा सत्य के साथ जुड़े हुए हैं और इसका अंश होने के नाते हम चेतन हैं

निस दिन सतसंगत में राचै , सबद में सुरत समावै ।
कहै कबीर ताको भय नाही , निर्भय पद परसावै।

Rakesh khurana On Sant kabir das

भाव : संत कबीर दास जी कहते हैं कि सतगुरु सदा सत्य के साथ जुड़े हुए हैं , वे सत में लीन हैं , वे प्रभु में अभेद हैं ।हमारा रात – दिन सत्संग के बीच गुजरे ।हम परमात्मा का अंश हैं और उसका अंश होने के नाते हम चेतन हैं और उस चेतना को हमने उभारना है , नहीं तो हमारी जिंदगी बेकार हो जाएगी ।उस चेतनता के साथ सतगुरु हमें ऐसे जोड़ देते हैं कि वह जोड़ कभी नहीं टूटता। जैसे – जैसे हम अभ्यास करते चले जाते हैं , हमारी सुरत अन्दर के शब्द के साथ जुडती जाती है , माया समाप्त हो जाती है । जब हम इस शरीर से ऊपर उठते है तो हम निडर हो जाते हैं , डर हमें छू भी नहीं सकता ।
हम एक ऐसे गुरु की शरण में पहुँच गए है जो हमें प्रभु की ज्योति , श्रुति के साथ जोड़ देता है ।
संत कबीर दास जी
प्रस्तुति राकेश खुराना

सतगुरु उस अगम , निराकार , अगोचर का देहधारी स्वरूप है

सतगुरु मुकर दिखाया घट का नाचूंगी दे – दे चुटकी ।
मेरा सुहाग अब मोकूं दरसा और न जाने घट – घट की ।

Rakesh khurana on sant meera bai

मीरा कहती है – सतगुरु ने मेरे अंतर का दर्पण साफ़ कर दिया है , जिसमें मुझे प्रभु के दर्शन होते हैं । मैं सुहागिन हो गई । मेरी आत्मा का परमात्मा से मिलन हो गया । इस आनंद में मैं खुश होकर नाचूंगी । सतगुरु ही घट के आन्तरिक रहस्य को जान सकता है ।
मीरा कहती है सतगुरु के अलावा घट की बात जानने वाला परमात्मा है । इससे सिद्ध होता है कि सतगुरु परमात्मा का ही अभिन्न स्वरूप है । सतगुरु उस अगम , निराकार , अगोचर का देहधारी स्वरूप है ।
संत मीराबाई
प्रस्तुति राकेश खुराना

कर्मों का विधान बड़ा अटल है जिसे टाला नहीं जा सकता

करम गति टारे नाहीं टरी ।
मुनि वशिष्ट से पंडित ज्ञानी , सोध के लगन धरी ।
सीता हरन मरन दशरथ को , वन में बिपति परी ।

Rakesh Khurana On Sant Kabir Das

भाव : संत कबीर दास जी कर्मों के बारे में हमें समझा रहे हैं कि कर्मों का विधान बड़ा अटल है और ये टाला नहीं जा सकता ।कर्मों को अगर हम टालना भी चाहें ,तो टाल नहीं सकते ।कर्मों की प्रबलता पर विशेष प्रकाश डालते हुए कहते हैं कि राजा दशरथ के कुलगुरु मुनि वशिष्ठ जी बहुत बड़े ज्ञानी थे । उन्होंने सोच – समझ कर श्री रामचंद्र जी की जन्मपत्री तैयार की । अपना पूरा ध्यान लगाकर लगन की घड़ी निकाली । उसके बाद क्या हुआ कि इतने बड़े ज्ञानी ने जब सोच – समझ कर श्री रामचंद्र जी की आगे की ज़िंदगी का हाल लिखा तब भी उन्हें वन में जाना पड़ा , इस दुःख में राजा दशरथ के प्राण चले गए । सीता जी का हरण हो गया ।
संत कबीर दास जी
प्रस्तुती राकेश खुराना

नाम का जाप करो और उसके अर्थ की भावना में लीन हो जाओ -यह मन्त्र – योग की विधि है

यथा वृक्ष भी बीज से , जल – रज ऋतु – संयोग ।
पा कर, विकसे क्रम से , त्यों मन्त्र से योग ।

श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज द्वारा रचित अमृत वाणी का एक अंश
प्रस्तुती राकेश खुराना

भाव : जिस प्रकार बीज- जल , मिट्टी और अनुकूल मौसम के सहयोग (मेल ) से धीरे – धीरे वृक्ष बन जाता है , उसी प्रकार मन्त्र – जाप से निरंतर आध्यात्मिक प्रगति होती रहती है।
मन्त्र योग : ऐसी पद्धति , जो मन्त्र की साधना से भगवद मिलन करा दे ।
धारणा , ध्यान और समाधि तीनों का मन्त्र से योग मन्त्र – योग कहलाता है । नाम का जाप करो और उसके अर्थ की भावना में लीन हो जाओ -यह मन्त्र – योग की विधि है ।
श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज द्वारा रचित अमृत वाणी का एक अंश
प्रस्तुती राकेश खुराना