राम – नाम जो जन मन लावे ,
उस में शुभ सभी बस जावें ।
जहाँ हो राम – नाम धुन नाद ,
भागें वहाँ से विषम – विषाद ।
श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज द्वारा रचित अमृत वाणी का एक अंश
प्रस्तुति राकेश खुराना
राम – नाम जो जन मन लावे ,
उस में शुभ सभी बस जावें ।
जहाँ हो राम – नाम धुन नाद ,
भागें वहाँ से विषम – विषाद ।
चरण सोई जो नचत प्रेम से , कर सोई जो पूजा ।
सीस वही जो निवे साधु को , रसना और न दूजा।
साधो सो सतगुरु मोहिं भावै ।
सतनाम का भरि – भरि प्याला , आप पिवै मोहिं प्यावै ।
मेले जाय न महंत कहावै , पूजा भेंट न लावै ।
परदा दूरि करै आँखिन को , निज दरसन दिखलावै ।
[मेरठ]श्री रामशरणम आश्रम , गुरुकुल डोरली , मेरठ में प्रात:कालीन सत्संग के अवसर परपूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने अमृतमयी प्रवचनों की वर्षा करते हुए कहा
जेहि रहीम तन मन लियो , कियो हिए बिच भौन ।
तासों दुःख सुख कहन की , रही बात अब कौन ।
निस दिन सतसंगत में राचै , सबद में सुरत समावै ।
कहै कबीर ताको भय नाही , निर्भय पद परसावै।
सतगुरु मुकर दिखाया घट का नाचूंगी दे – दे चुटकी ।
मेरा सुहाग अब मोकूं दरसा और न जाने घट – घट की ।
करम गति टारे नाहीं टरी ।
मुनि वशिष्ट से पंडित ज्ञानी , सोध के लगन धरी ।
सीता हरन मरन दशरथ को , वन में बिपति परी ।
यथा वृक्ष भी बीज से , जल – रज ऋतु – संयोग ।
पा कर, विकसे क्रम से , त्यों मन्त्र से योग ।
Recent Comments