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Tag: L K Advani

एल के अडवाणी ने साबित कर दिया कि वड्डे अगर सांप नहीं रहते तो वठुयें[बिच्छु] जरुर होते है


झल्ले दी झल्लियाँ गल्लां

एक दुखी भाजपाई

ओये झल्लेया बैठे बिठाए ये क्या पंगा पड़ गया ? इतनी मुश्किलों से गोवा में मंथन करके नरेन्द्र मोदी सरीखे अमृत को निकाला गया था लेकिन ये बाबा एल के अडवाणी इस अमृत को जहर बनाने पर तुले हैं | इससे भाजपा की ऐसी की तैसी हो रही है|

झल्ला

ओ सेठ जी पुराणी कहावत है कि वड्डे [बड़े]अगर सांप नही रहते तो वठुयें[बिच्छु] जरुर होते है और आप जी ने अपने घर के सबसे बड़े अडवाणी को किनारे लगा दिया|अडवाणी भविष्यवाणी के अनुसार मोदी की ताज पोशी से कांग्रेस को फायदा पहुंचेगा सो इसकी शुरुआत हो गई है| झल्ले विचारानुसार अगर मामले को जल्द नही संभाला गया तो अमृत को विष बनाने में देर नही लगेगी|

एल के अडवाणी ने इस्तीफा दिया भाजपा ने अस्वीकार कर दिया ,क्या बी जे पी अभी भी पार्टी विद दी डिफरेंस है

भाजपा के वरिष्ठ मार्ग दर्शक एल के अडवाणी ने वर्तमान घटनाक्रम से क्षुब्ध होकर पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया लेकिन पार्टी के संसदीय बोर्ड ने सर्व सम्मति से इस्तीफे को अस्वीकार [Reject] कर दिया |इसके अलावा पार्टी अध्यक्ष राज नाथ सिंह ने किसी भी सूरत में इस्तीफा स्वीकार करने से इनकार कर दिया है|
गौरतलब है भाजपा के गोवा मंथन से निकले नरेन्द्र मोदी को अमृत मानने से इनकार करके पार्टी के सभी पदों से अध्यक्ष राज नाथ सिंह को पर्सनली इस्तीफा सौंप दिया
गोवा में आयोजित भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सम्मलेन में एल के अडवाणी ने अनुपस्थित रह कर यह साबित कर दिया कि आठ दशकों के पश्चात भी अडवाणी अभी बुड्डे नहीं हुए हैं या उन्होंने कह दिया कि बुड्डा होगा तेरा बाप |अडवाणी के साथ अनेकों नेताओं ने भी गोवा से किनारा कर लिया| इसके उपरांत भी पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने नरेन्द्र मोदी के सर पर चुनाव समिति के चेयर मैन का ताज सजा दिया|इससे क्षुब्ध होकर अडवाणी ने अपने अध्यक्ष को इस्तीफा सौंप दिया|अपने इस्तीफे में उन्होंने लिखा कि मैंने उम्र भर जनसंघ और भाजपा में समर्पित भाव से कार्य करके संतोष प्राप्त किया है|
लेकिन पिछले कुछ समय से पार्टी में घटना क्रम और पार्टी की दिशा से अपने आप को जोड़ नही पा रहा हूँ| यह पार्टी अब डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी +दीन दयाल उपाध्याय+नानाजी +वाजपई जी जैसे महँ नेताओं का आदर्श केवल देश की सेवा रहा है लेकिन वर्तमान में अनेकों नेताओं के अजेंडे में केवल व्यक्तिगत मुद्दे ही रह गए हैं| इन आरोपों के साथ अडवाणी ने इस्तीफे की बात लिखी है|
इस घमासान के बाद एक बात देश की राजनीती में उड़ रही है कि क्या भाजपा अब वाकई पार्टी विद दी डिफरेंस [ PartyWithADifference ] रह गई है?

पार्टी विद डिफरेंस भाजपा कब तक आडवाणी और मोदी रूपी दो नावों की सवारी करेगी

जनसंघ के भारतीय जनता पार्टी के चोले को ३३ वर्ष होगये |इस अवसर को यादगार बनाने के लिए ६ अप्रैल को देश भर में समारोह हुए| |कार्यकर्ताओं ने रैली निकाली | भाषण हुए||पार्टी के 33 साल के सफर पर प्रकाश डाला गया |आउट डेटेड जन संघियों को सम्मानित किया गया| जनसंघ के जमाने के नेताओं ने अपनी आदत अनुसार मौजूदा वक्त की चुनौतियों के प्रति वर्तमान पार्टी के कर्णधारों को चेताया |इस आयोजन से भाजपा को पाजिटिव के साथ नेगेटिव पब्लिसिटी भी मिली है|पी एम् इन वेटिंग एल के अडवाणी के मुकाबिले पी एम् डेसीगनेट नरेन्द्र मोदी का गुणगान किये जाने से कांग्रेस की भांति भाजपा में भी सत्ता के दो केंद्र दिखाई देने लग गए हैं|
दिल्ली+गुजरात +उत्तर प्रदेश आदि प्रदेशों में भव्य समारोह हुए| जनसंघ के जमाने के कुछ बचे हुए कार्यकर्ताओं का सम्मान भी किया गया | इस अवसर पर जनसंघ को भाजपा का आकर्षक चोला पहनाने के लिए अपना खून पसीना एक कर देने वाले नेताओं में से एल के अडवाणी की उपेक्षा कई लोगों को खली | गुजरात के मुख्य मंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने यहाँ एक विशाल समारोह आयोजित किया|इसमें पार्टी अध्यक्ष राज नाथ सिंह को रेड कारपेट सम्मान दिया गया|उन्होंने अपने भाषण में लम्बे समय से अस्वस्थ्य चल रहे अटल बिहारी वाजपई को कई बार याद किया|अटल बिहारी के हवाले से उन्होंने कंकर को शंकर बता कर तालियाँ भी बटौरी लेकिन अटल बिहारी के ही समकक्ष एल के अडवाणी को किसी बात के लिए श्रेय देना तो दूर उन्हें याद तक नही किया गया |यहाँ तक कि समारोह स्थल पर लगे विशाल पोस्टरों से भी अडवाणी गायब थे|

 पार्टी विद डिफरेंस भाजपा कब तक आडवाणी और मोदी रूपी दो नावों की सवारी करेगी

पार्टी विद डिफरेंस भाजपा कब तक आडवाणी और मोदी रूपी दो नावों की सवारी करेगी


अनुमान लगाया जा रहा है कि मोदी ने राजनितिक बदला उतार दिया है|कुछ दिन पहले दिल्ली में आयोजित एक समारोह में जब मोदी के लिए सभागार में नारे लग रहे थे तब एल के आडवाणी ने मोदी की तीन बार चुनाव जीतने की तारीफ़ तो जरुर की लेकिन इसके साथ ही उन्होंने मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री शिव राज सिंह का नाम भी जोड़ दिया|वरिष्ठ नेता ने संभवत यह बताने का प्रयास किया कि नरेन्द्र मोदी अभी भी छेत्रिय स्तर तक ही सिमटे है|उस समय मोदी की बॉडी लेङ्गुएज से असहजता का भाव साफ़ टूर से दिखने लगा था| अब नरेन्द्र मोदी ने पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह को सम्मानित करके और आडवाणी को इग्नोर करके दोनों क़र्ज़ चुका दिए| लेकिन इन दोनों समारोहों ने भाजपा में पी एम् पद की दावेदारी को लेकर एक नए विवाद को जन्म दे दिया है|
दिल्ली में भी विजय .गोयल ने अगला चुनाव एल के अडवाणी के न्रेतत्व में लड़ने की बात कही तो बड़ी आलोचना हुई|अडवाणी के साथ बैठे पार्टी अध्यक्ष राज नाथ सिंह बड़े असहज हो उठे|उसके पश्चात आडवाणी ने भी सक्रीय भूमिका निभाने के संकल्प को दोहराया|उन्होंने तो अपनी स्वर्ण युग रथ यात्रा और अयोध्या आन्दोलन पर गर्व भी प्रकट कर दिया| इसके साथ ही उन्होंने एक बार फिर सपा के लोहिया वाद की तारीफ करके यह बताने का प्रयास किया कि नितीश कुमार के साथ अब मुलायम सिंह यादव कि सपोर्ट भी उन्हें मिल सकती है| इसके पश्चात विजय गोयल पर दबाब बना और उन्होंने अपने वक्तव्य से यु टर्न ले लिया|
इससे पूर्व अपने ब्लॉग में भी आडवाणी ने राजनितिक संकेत देने की कौशिश की है|उन्होंनेप्रभु यीशु के पुनर्जन्म से जुड़े त्यौहार ईस्टर से भाजपा के सम्बन्ध स्थापित किये| उन्होंने बताया कि जिस प्रकार अंधकार के पश्चात ईस्टर मनाया जाता है ठीक इसीप्रकार भाजपा का भी जन्म हुआ है और यह त्यौहार कभी एक निश्चित तिथि पर नही आता इसीलिए आगामी वर्ष में यह २० अप्रैल को आयेगा जाहिर है उस समय २०१४ के चुनावों की धूम होगी और उस समय भाजपा और आडवाणी पुनः सत्ता में आ सकते हैं|
वैसे आवश्यकता नुसार वरिष्ठों को किनारे लगाने की पुराणी परम्परा है | केन्द्रीय नेता बलराज मधोक से लेकर छेत्रिय मोहन लाल कपूर+ और स्थानीय ठाकुर दास+धर्मवीर आनंद आदि अनेकों उधारन हैं|अब फिर अपने इतिहास को दोहराने का संकेत दिया जाने लगा है|देखना है कि भाजपा जैसी पार्टी विद डिफरेंस दो नावों कि सवारी कब तक करेगी|

यशवंत सिन्हा ने बी जे पी के लिए अपयश का उत्पादन करने के लिए झाड़खंड अध्यक्ष की न्युक्ति को मुद्दा बनाया

वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा ने अपनी भारतीय जनता पार्टी में यश नहीं दिए जाने से नाराज होकर पार्टी के लिए अपयश का उत्पादन करने की तैय्यारी कर ली है |इसके पहले चरण में पार्टी राष्ट्रीय कार्यकारिणी छोड़ने की तैय्यारी किये जाने की बात कही जा रही है|
सुनने में आया रहा है कि झारखंड के बीजेपी अध्यक्ष रवींद्र राय को पार्टी की राज्य इकाई का अध्यक्ष पद दिए जाने को लेकर श्री सिन्हा नाराज है| फ़िलहाल पार्टी अध्यक्ष राज नाथ सिंह कोलकत्ता का दौरा कर रहे हैं वहां से लौटने पर ही श्री सिन्हा की मांगों पर गौर किया जा सकेगा| सियासी गलियारों से छन्न कर आ रही खबरों के अनुसार यशवंत सिन्हा ने अभी तक पार्टी हाईकमान को इस्तीफा नहीं भेजा है|

 यशवंत सिन्हा ने बी जे पी के लिए अपयश का उत्पादन करने के लिए झाड़खंड अध्यक्ष की न्युक्ति को मुद्दा बनाया

यशवंत सिन्हा ने बी जे पी के लिए अपयश का उत्पादन करने के लिए झाड़खंड अध्यक्ष की न्युक्ति को मुद्दा बनाया


वहीं पार्टी प्रवक्ता शहनवाज हुसैन ने स्थिति को संभालने का प्रयास करते हुए कहा है कि , यशवंत सिन्हा पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं+वह पार्टी के फायदे के लिए काम करते रहे हैं+ वे पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष भी रह चुके हैं.
गौरतलब है कि संसद का सत्र अभी जारी है। हर रोज सदन की कार्यवाही शुरू होने से पहले बीजेपी की बैठक होती है जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी करते हैं। आज जैसे ही ये बैठक शुरू हुई पार्टी नेता यशवंत सिन्हा ने आडवाणी के पैर छुए और अपनी नाराजगी प्रगट करके श्री सिन्हा पार्टी से बाहर चले गए।

भाजपा के पी एम् इन वेटिंग एल के आडवाणी ने पार्टी की राष्ट्रीय परिषद के अधिवेशन में सत्ता प्राप्ति के गुरु मन्त्र दिए

भाजपा के पी एम् इन वेटिंग वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने पार्टी की राष्ट्रीय परिषद के अधिवेशन के समापन भाषण में २०१४ के चुनावों में भाजपा का ध्वज फहराने के लिए गुरु मन्त्र दिए |उन्होंने पार्टी विद डिफरेंस के नारे को अक्षरश सत्य करने के लिए अनेको उपाय बताये |[१] उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार से कोई समझौता नहीं किया जाएगा। उन्होंने में अपने समापन भाषण में कहा कि भाजपा की सरकारें जहां भी रहीं, उनका रिकार्ड ईमानदारी का रहा|
श्री आडवाणी ने आज ३ मार्च ,रविवार को पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह से भ्रष्टाचार की शिकायतों पर कतई लापरवाही नहीं करने का सुझाव दिया और पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा कि आगामी चुनाव में जीत हासिल करें। आडवाणी ने कहा, “भ्रष्टाचार के साथ कोई समझौता नहीं होना चाहिए।”
हालांकि कर्नाटक में भाजपा सरकार पर कथित भ्रष्टाचार के आरोपों की ओर इशारा करते हुए आडवाणी ने कर्नाटक के घटनाक्रम से निपटने में पार्टी की भूमिका की कमजोरी पर भी उंगली उठाई |

भाजपा के पी एम् इन वेटिंग एल के आडवाणी ने पार्टी की राष्ट्रीय परिषद के अधिवेशन में सत्ता प्राप्ति के गुरु मन्त्र दिए

भाजपा के पी एम् इन वेटिंग एल के आडवाणी ने पार्टी की राष्ट्रीय परिषद के अधिवेशन में सत्ता प्राप्ति के गुरु मन्त्र दिए


उन्होंने इसके लिए जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के समय का एक उदाहरण दिया जब राजस्थान विधानसभा में चुने गये पार्टी के आठ में से छह विधायकों ने जागीर प्रथा को बंद करने के नाम पर पार्टी से अलग रुख अख्तियार किया और उन्हें निलंबित कर दिया गया।
आडवाणी ने कहा, ‘‘भाजपा आज भी भ्रष्टाचार के साथ कोई समझौता नहीं करेगी।’’ उन्होंने कहा कि भाजपा की स्थापना के समय वाजपेयी ने ‘पार्टी विथ डिफरेंस’ की बात कही थी जिसे आज भी पार्टी की साख के लिए कायम रखना जरूरी है। हमें सुशासन के एजेंडे के साथ गैर कांग्रेस विकल्प के रूप में अपनी पहचान बनाने के लिए जनता का भरोसा हासिल करना होगा। उन्होंने एन डी ऐ के दायरे को विकसित किये जाने पर भी बल दिया|[२]पार्टी के वयोवृद्ध नेता श्री अडवाणी ने चुटकी लेते हुए कहा कि पार्टी की कमियों को मीडिया के समक्ष बताने के स्थान पर पार्टी के जिम्मेदार नेताओं को बताना चाहिए | उन्होंने अपने अंदाज में गुजरात के मुख्य मंत्री नरेन्द्र मोदी+ मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह और लोक सभा में पार्टी नेता श्रीमती सुषमा स्वराज की तारीफ़ की

एल के अडवाणी के नज़रिए से तवलीन सिंह की १० जनपथी” दरबार” L K Advani On “Darbar” Of TAVLEEN SINGH

एल के अडवाणी ने अपने ब्लाग में तवलीन सिंह की पुस्तक दरबार के हवाले से इंडिया गेट+और रायसीना हिल्स पर हो रही दमनात्मक कार्यवाही को आज़ादी के विरुद्ध आपातकालीन युग की शुरुआत बताने का प्रयास किया है|उन्होंने इसके लिए पुस्तक में से आपातकाल के दौरान रैली में दिए गए अपने नेता अटल बिहारी वाजपई की इस टिपण्णी का भी उल्लेख किया|

एल के अडवाणी के नज़रिए से तवलीन सिंह की १० जनपथी” दरबार”


अडवाणी ने ब्लाग के टेलपीस (पश्च्यलेख)में कहा है की मेरा मानना है कि तवलीन की पुस्तक के पाठक अध्याय पांच शीर्षक 1977 चुनाव को बड़े चाव से पढ़ेंगे-विशेषकर इस चुनावी भाषण के उदाहरण को, सर्वश्रेष्ठ वाजपेयी (Vintage Vajpayee)।
जब दिल्ली की दीवारों पर पहला पोस्टर लगा कि रामलीला मैदान में एक रैली होगी जिसे प्रमुख विपक्षी नेता सम्बोधित करेंगे, तो हम सभी को लगा कि यह एक मजाक है। स्टेट्समैन के रिपोरटर्स कक्ष में यह धारणा थी कि यदि पोस्टर सही भी हैं तो रैली फ्लॉप होगी क्योंकि लोग इसमें भाग लेने से डरेंगे। अभी भी आपातकाल प्रभावी था और पिछले अठारह महीनों से बना भय का वातावरण छंटा नहीं था।
चीफ रिपोर्टर राजू, सदैव की भांति निराशावादी था और उसने कहा कि श्रीमती गांधी को कोई हरा नहीं सकता, इसलिए इसमें कोई दम नहीं है। ‘यहां तक कि यह विपक्ष की रैली है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। यदि उन्हें अपनी जीत के बारे में थोड़ा भी संदेह होता तो वह चुनाव नहीं कराती‘।
‘हां, लेकिन वह गलती तो कर सकती है,’ मैंने कहा। ‘मैंने सुना है कि उनका बेटा और उत्तराधिकारी इसके विरुध्द थे। उन्होंने बताया कि वह हार सकती हैं।‘ अनेक वर्ष बाद जब संजय गांधी के अच्छे दोस्त कमलनाथ दिल्ली में कांग्रेस सरकार में केबिनेट मंत्री थे, से मैंने पूछा कि क्या यह सही है कि संजय ने अपनी मां के चुनाव कराने सम्बन्धी निर्णय का विरोध किया था, कमलनाथ ने इसकी पुष्टि की। उन्होंने बताया कि जब उन्होंने चुनावों के बारे में सुना तब संजय और वह श्रीनगर में एक साथ थे और इस पर संजय काफी खफा थे।
जब हम मैदान पर पहुंचे तो हमने दखा कि लोग सभी दिशाओं से उमड़ रहे हैं। मगर अंदर और ज्यादा भीड़ थी। इतनी भीड़ मैंने कभी किसी राजनीतिक रैली में नहीं देखी थी। भीड़ रामलीला मैदान के आखिर तक और उससे भी आगे तक भरी हुई थी।
लगभग शाम को 6 बजे विपक्षी नेता सफेद एम्बेसडर कारों के काफिले में पहुंचे। एक के बाद एक ने मंच पर उबाऊ, लम्बे भाषण दिए कि उन्होंने जेल में कितने कष्ट उठाए। हिन्दुस्तान टाइम्स के अपने एक सहयोगी को मैंने कहा यदि किसी ने कोई प्रेरणादायक भाषण देना शुरु नहीं किया तो लोग जाना शुरु कर देंगे। उस समय रात के 9 बज चुके थे और रात ठंडी होने लगी थी यद्यपि बारिश रुक गई थी। उसने मुस्कराहट के साथ उत्तर दिया ‘चिंता मत करो, जब तक अटलजी नहीं बोलेंगे, कोई उठकर नहीं जाएगा।‘ उसने एक छोटे से व्यक्ति की ओर ईशारा किया जिसके बाल सफेद थे और उस शाम के अंतिम वक्ता थे। ‘क्यों?’ ‘क्योंकि वह भारत के सर्वश्रेठ वक्ता हैं।‘
जब अटलजी की बारी आई उस समय तक रात के 9.30 बज चुके थे और जैसे ही वह बोलने के लिए खड़े हुए तो विशाल भीड़ खड़ी हो गई और तालियां बजानी शुरु कर दी: पहले थोड़ा हिचक कर, फिर और उत्साह से उन्होंने नारा लगाया, ‘इंदिरा गांधी मुर्दाबाद, अटल बिहारी जिंदाबाद!‘ उन्होंने नारे का जवाब नमस्ते की मुद्रा और एक हल्की मुस्कान से दिया। तब उन्होंने भीड़ को शांत करने हेतु दोनों हाथ उठाए और एक मजे हुए कलाकार की भांति अपनी आंखे बंद कीं, और कहा बाद मुद्दत के मिले हैं दिवाने। उन्होंने चुप्पी साधी। भीड़ उतावली हो उठी। जब तालियां थमीं उन्होंने अपनी आंखें फिर खोलीं और फिर लम्बी चुप्पी के बाद बोले ‘कहने सुनने को बहुत हैं अफसाने।‘ तालियों की गड़गडाहट लम्बी थी और इसकी अंतिम पंक्ति जो उन्होंने बाद में मुझे बताई थी, तभी रची: ‘खुली हवा में जरा सांस तो ले लें, कब तक रहेगी आजादी कौन जाने।‘ अब भीड़ उन्मत्त हो चुकी थी।
रात की ठंड बढ़ने और फिर से शुरु हुई हल्की बूंदाबांदी के बावजूद कोई भी अपने स्थान से नहीं हटा। उन्होंने अटलजी को पूरी शांति के साथ सुना।
सरल हिन्दी में, वाकपटुता से अटलजी ने उन्हें बताया कि क्यों उन्हें इंदिरा गांधी को वोट नहीं देना चाहिए। उस रात दिए गए भाषण की प्रति मेरे पास नहीं है और वैसे भी वह बिना तैयारी के बोले थे, लेकिन जो मुझे याद है उसे मैं यहां सविस्तार बता सकती हूं। उन्होंने शुरु किया आजादी, लोकतांत्रिक अधिकारों, सत्ता में बैठे लोगों से असहमत होने का मौलिक अधिकार, जब तक आपसे ले लिए नहीं जाते उनका कोई अर्थ नहीं होता। पिछले दो वर्षों में यह न केवल ले लिए गए बल्कि जिन्होंने विरोध करने का साहस किया उन्हें दण्डित किया गया। जिस भारत को उसके नागरिक प्यार करते थे, अब मौजूद नहीं था। उन्होंने यह कहते हुए जोड़ा कि यह विशाल बंदी कैम्प बन गया है, एक ऐसा बंदी कैंप जिसमें मनुष्य को मनुष्य नहीं माना जाता। उनके साथ इस तरह से बर्ताव किया गया कि उन्हें उनकी इच्छा के विरुध्द काम करने को बाध्य किया गया जोकि एक मनुष्य की स्वतंत्र इच्छा के विरुध्द नहीं किया जाना चाहिए। विपक्षी नेता (उन्होंने कहा ‘हम‘) जानते हैं कि भारत की बढ़ती जनसंख्या के बारे में कुछ करने की जरुरत है; वे परिवार नियोजन का विरोध नहीं करते, लेकिन वे इसमें भी विश्वास नहीं करते कि मनुष्यों को जानवरों की तरह ट्रकों में डालकर उनकी इच्छा के विरुध्द उनकी नसबंदी कर दी जाए और वापस भेज दिया जाए। इस टिप्पणी पर तालियां बजीं और बजती रहीं, बजती रहीं तथा चुनाव वाले दिन ही मुझे समझ आया कि यह क्यों बज रहीं थीं।
अटलजी के भाषण समाप्ति के रुकी भीड़ ने और विपक्षी नेता अपनी सफेद एम्बेसेडर कारों में बैठे तथा भीड़ को छोड़ चले गए मानों तय किया था कि प्रेरणास्पद भाषण सुनने के बाद तालियों से भी ज्यादा कुछ और करना है। इसलिए जब पार्टी कार्यकर्ता चादर लेकर चंदा इक्ठ्ठा करते दिखाई दिए तो सभी ने कुछ न कुछ दिया। जनवरी की उस सर्द रात को मैंने देखा कि रिक्शा वाले और दिल्ली की सड़कों पर दयनीय हालत में रहने वाले दिहाड़ी मजदूर भी जो दे सकते थे, दे रहे थे तो पहली बार मुझे लगा कि इंदिरा गांधी के चुनाव हारने की संभावना हो सकती है।