Ad

Category: Poetry

प्रभु की शरण में आते ही भय,दुःख,दर्द दूर हो जाते हैं

प्रभु की सरणि सगल भै लाथे दुःख बिनसे सुखु पाइआ ।
दइआलु होआ पारब्रहमु सुआमी पूरा सतिगुरु धिआइआ ।

Rakesh Khurana And Guru Arjun dev Ji Mahaaraaj

भाव : श्री गुरु अर्जनदेव जी महाराज हमें समझा रहे हैं कि जब हम प्रभु की शरण में आते हैं तो हमारे जितने भय हैं , वे दूर हो जाते हैं , जितने हमारे दुःख – दर्द हैं , सबका नाश हो जाता है और हमें सुख प्राप्त होता है ।जब हम अपना पूरा ध्यान सतगुरु की ओर कर देते हैं तब पारब्रह्म का स्वामी परमात्मा हम पर दयालु हो जाता है । महापुरुष हमें समझाते हैं हम अपना समय व्यर्थ न करें , हमारा हर पल परमात्मा की याद में हो ।
वाणी : श्री गुरु अर्जनदेव जी महाराज , श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी
प्रस्तुति राकेश खुराना

सांसारिक सुख मृगतृष्णा है और परम आनंद और सुख परमात्मा के नाम में ही है

श्री रामशरणम आश्रम , गुरुकुल डोरली , मेरठ में दिनांक 13 जनवरी 2013 को प्रात:कालीन सत्संग के अवसर पर पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने अमृतमयी प्रवचनों की वर्षा करते हुए कहा :-
ये जन्म तुझे अनमोल मिला चाहे जो इससे कमा बाबा ।
कुछ दीं कमा, कुछ दुनिया कमा, कुछ हरि के हेतु लगा बाबा ।
भाव : हमें

Poojy Niraj Mani Rishi Ji

मिला , संत भी मिले , संतों से नाम भी मिला , संतों के द्वारा बनाए गए आश्रम अर्थात नाम जपने का स्थान भी मिला परन्तु हमारे अंत:करण में परमात्मा के नाम को जपने का शौक पैदा नहीं होता । हम पूरी आयु सांसारिक सुखों के पीछे ही भागते रहते हैं जो स्थायी नहीं है । जगत के सुख तो ऐसे हैं जैसे मृगतृष्णा ।जैसे रेगिस्तान में हिरन , रेत की चमक को पानी समझकर अपनी प्यास बुझाने के लिए उसके पीछे भागता है , उसकी प्यास तो नहीं बुझती परन्तु भागते – भागते अचेत होकर गिर पड़ता है और अपने प्राण दे देता है , इसी तरह से हम मोह , ममय और कामनाओं के जाल में फंस जाते हैं , कामनाओं की पूर्ति तो नहीं होती परंतु हमारा जीवन इसी में व्यतीत हो जाता है।
संत हमें समझाते हैं कि इस अनमोल जीवन को परमात्मा का नाम लेने में लगाओ क्योंकि परम आनंद और सुख परमात्मा के नाम में है इसलिए उसके नाम का भजन का करो और उनके चरणों के अनुरागी बनो
प्रस्तुति राकेश खुराना

प्रभु के संगीत के श्रवण मात्र से वापस अपने निजधाम सचखंड में पहुंचा जा सकता है

नकली मंदिर मसजिदों में जाए सद अफ़सोस है ।
कुदरती मसजिद का साकिन दुःख उठाने के लिए ।
कुदरती काबे की तू महराब में सुन ग़ौर से ।
आ रही धुर से सदा तेरे बुलाने के लिए ।

Rakesh Khurana

भाव : संत तुलसी साहिब फरमा रहे हैं कि जो बाहर के मंदिर और मस्जिद बने हुए हैं उसमें हम लोग जाते हैं , उनका स्वरूप भी इन्सान के रूप में बनाने का प्रयास किया जाता है।उनके गुम्बद सिर के सामान होते हैं । धर्म – स्थान पर दिया या मोमबत्ती जलेगी , घंटियाँ बजेंगी , या मुल्ला अजान देगा । परन्तु जो कुदरत ने मस्जिद बनाई है , वह यह मानव चोला है और इसका साकिन अर्थात इसमें रहने वाली हमारी आत्मा दुःख उठा रही है क्योंकि वह परमात्मा से अलग है ।
परमात्मा का बनाया हुआ जो यह शरीर है उसकी महराब शिव नेत्र है (दसवाँ द्वार अथवा दिव्य चक्षु ) उस पर हम अपना ध्यान टिकाएं और प्रभु के संगीत को सुनें । उस मधुर संगीत , उस धुन के साथ , वह जो धारा परमात्मा की ज्योति और श्रुति की है , जो स्वयं प्रभु से उत्पन्न हुई है , उसके जरिये हम वापस अपने निजधाम सचखंड में पहुँच सकते हैं ।
संत तुलसी साहिब हाथरस वाले
प्रस्तुति राकेश खुराना

कुविचार और दुष्कर्म जितने भी लुभावने लगें , उन्हें त्याग देना ही हितकर होता है

रहिमन रहिला की भली ,जो परसै चित लाय ।
परसत मन मैलो करे , सो मैदा जरि जाय ।
अर्थ : कवि रहीम कहते हैं कि बेसन का आटा हितकर है, जिसको प्रेमपूर्वक शरीर पर मला जाता है , परन्तु मलने पर जो तन-मन को मैला कर दे , उस मैदा का नष्ट हो जाना ही बेहतर है।

Rakesh khurana On Sant Rahim Das

भाव: जिन सद्विचारों और कर्मों से तन_मन शुद्ध और पवित्र हो उन्हें ही ग्रहण करना हितकर होता है। किन्तु जिन कुविचारों और कर्मों से तन-मन मैला हो , वे देखने में चाहे कितने ही अच्छे लगें , उन्हें त्याग देना ही हितकर होता है।
संत रहीम दास जी
प्रस्तुति राकेश खुराना

स्वयम को आत्मा के रूप में देखने से परमात्मा के साथ रहने की तीव्र तड़प जाग उठती है

मीरा मन मानी सुरत सैल असमानी ।
जब जब सुरत लगे वा घर की , पल पल नैनन पानी ।

Rakesh Khurana On Sant Meera Bai

भाव : संत मीरा जी कहती हैं कि मेरा मन इसे मान गया है कि ये जो शरीर है , ये मेरा असली धाम नहीं है । अपने गुरु के बताये हुए रास्ते पर चलकर मैं मन की जकड़ से निकल आई हूँ । मेरी रूह अब अन्दर के आसमानों की , अन्दर के चेतन मंडलों की सैर कर रही है ।जब – जब मुझे अपने घर की याद आती है , वह घर जहाँ से मैं आई हूँ , परमात्मा का घर जिसे सचखंड कहा जाता है , उस समय मेरी आँखें भर आती हैं ।जब हम अपने आपको आत्मा के रूप में देखना शुरू कर देते है , तो हमारे अन्दर परमात्मा के साथ हर समय रहने की तीव्र तड़प जाग उठती है ।
संत मीराबाई जी की वाणी
प्रस्तुति राकेश खुराना

ममता का सर्वथा नाश होना ही अंत:करण की शुद्धि है: श्रीमद्भगवद्गीता

श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता
श्रीभगवानुवाच
कायेन मनसा बुद्ध्या केवलैरिन्द्रियैरपि ।
योगिन: कर्म कुर्वन्ति संगं त्यक्त्वात्मशुद्धये ।
कर्मयोगी आसक्ति का त्याग करके केवल (ममता रहित )इन्द्रियां , शरीर , मन और बुद्धि के द्वारा अंत:करण की शुद्धि के लिए ही कर्म करते हैं ।
व्याख्या : ममता का सर्वथा नाश होना ही अंत:करण की शुद्धि है । कर्मयोगी साधक शरीर -इन्द्रियाँ -मन -बुद्धि को अपना तथा अपने लिए मानते हुए , प्रत्युत संसार का तथा संसार के लिए मानते हुए ही कर्म करते हैं । इस प्रकार कर्म करते – करते जब ममता का सर्वथा अभाव हो जाता है , तब अंत:करण पवित्र हो जाता है ।
श्लोक

Rakesh Khurana On श्रीमद्भगवद्गीता


प्रस्तुती राकेश खुराना

कुदरत एक है , सभी बन्दे भी उसी के हैं , इसीलिए कोई बुरा या अच्छा कैसे हो सकता है?

वर्तमान राजनीति में आ रहे रोजाना के आपत्तिजनक बयानों के परिपेक्ष्य में सेकड़ों साल पहले प्रतिष्ठित श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी की वाणी आज प्रासंगिक और अनुकरणीय है
अवलि अलह नूर उपाइआ कुदरति के सभ बन्दे ।
एक नूर ते सभु जगु उपजिआ कउन भले को मंदे

rakesh khurana कुदरत एक है , सभी बन्दे भी उसी के हैं ,

भाव : परमात्मा सबसे पहले अकेला था । नूर पहले उत्पन्न हुआ । जितने भी बन्दे हैं , सभी उसी नूर से बने हैं यह सारा जग उसी नूर का बना है ,हम सब को एक ही परम पिता परमेश्वर ने बनाया है, तो यहाँ पर कौन अच्छा कौन बुरा हो सकता है ?हर एक जीव उस नूर के जरिये यहाँ आया है । जिसमे प्रभु का नूर बस्ता है , वह बुरा कैसे हो सकता है ? यही तो हमारे लिए समझने की बात है यही सच्ची समझ “विवेक ” है ।
वाणी : श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी
प्रस्तुती राकेश खुराना

सारे संसार के पालनहार के पावन चरणों में नमस्कार स्वीकार हो

करता हूँ मैं वंदना , नत शिर बारम्बार ।
तुझे देव परमात्मन , मंगल शिव शुभकार ।
अंजलि पर मस्तक किये , विनय भक्ति के साथ ।
नमस्कार मेरा तुझे , होवे जग के नाथ ।

Amrit vani

भावार्थ : भक्तजन परमात्मा के दरबार में जाकर कहते हैं , हे मंगलमय , कल्याणकारी तथा सदा हमारा शुभ करने वाले परमात्मा आपको हम सिर झुकाकर बार – बार प्रणाम करते हैं ।हमें ऐसा वरदान दो कि आपके चरणों की वंदना , स्तुति में हम सदा लगे रहें जिससे हमारा मंगल हो और हमें सौभाग्य एवं शांति मिले । दोनों जुड़े हुए हाथों के साथ माथा झुकाकर ,दोनों घुटनों को टेककर नम्रता , प्रेम एवं भक्तिपूर्वक भाव से , हे सारे विश्व के स्वामी , सारे संसार के पालनहार , रक्षक “राम” आपके पावन चरणों में हमारा नमस्कार स्वीकार हो ।
श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज द्वारा रचित अमृत वाणी का एक अंश
प्रस्तुति राकेश खुराना

ईश्वर को सभी प्राणियों का ध्यान , चिंता रहती है । वो ही सबका पालनहार है: Amrit Vani

माँगूं मैं राम – कृपा दिन रात,
राम – कृपा हरे सब उत्पात ।
राम -कृपा लेवे अन्त सम्भाल ,
राम -प्रभु है जन प्रतिपाल ।
भावार्थ : जिज्ञासु परमात्मा से प्रार्थना करता है कि मैं आपका बालक आपकी शरण में हूँ । मैं आपकी कृपा हर समय चाहता हूँ क्योंकि राम – कृपा से ही मन की उथल – पुथल एवं चंचलता शांत होती है । जब मन की चंचलता शांत होती है , तब ही परमात्मा के नाम में चित्त लगता है और नाम जपने से ही व्यक्ति राम कृपा का पात्र बनता है ।बाकी सारा धन और पूंजियाँ तो इही लोक की हैं और सांसारिक धन अंत समय में हमारे साथ नहीं जाता , केवल राम नाम का धन ही एक ऐसी पूंजी है जो अंत समय में हमारी रक्षा करती है और हमारे साथ जाती है । ईश्वर को सभी प्राणियों का ध्यान , चिंता रहती है । वो ही सबका पालनहार है ।
श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज द्वारा रचित अमृत वाणी का एक अंश
प्रस्तुति राकेश खुराना

सच्चा प्रेमी प्रिय के वियोग में प्राण तक त्याग देता है

जाल परे जल जात बहि , तजि मीनन को मोह ।
रहिमन मछरी नीर को , तऊ न छाडत छोह ।

Rakesh khurana On Sant Rahim Das Ji

अर्थ : जब मछली पकड़ने के लिए नदी में जाल डाला जाता तब मछली जाल में फंस जाती है , और पानी अपनी सखी मछली का मोह त्याग कर आगे निकल जाता है , परन्तु मछली का जल से इतना प्रेम है कि वह पानी के बिना तड़प – तड़प कर मर जाती है ।
भाव : यहाँ कवि ने स्वार्थ और प्रेम की जल और मछली के रूपक से अच्छी व्याख्या की है कि स्वार्थी व्यक्ति का प्रेम सकारण होता है , किन्तु जिसने सच्चा प्यार किया है वह अपने प्रिय के वियोग में अपने प्राण तक दे देता है ।
मछुआरा मछली पकड़ने के लिए पानी में जाल फैलाता है ।मछली उसमें फंस भी जाती है , किन्तु जल तो अपने भीतर रहने वाली मछली का मोह एकदम से त्याग देता है और जाल से निकल जाता है , किन्तु जल के अभाव में बेचारी मछली दम तोड़ देती है ।
संत रहीम दास जी
प्रस्तुति राकेश खुराना