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Tag: प्रस्तुति राकेश खुराना

मनमती को छोड़ कर गुरुमती को धारण करने से ही परमात्मा का सच्चा सिमरन होता है

श्री शक्तिधाम मंदिर , लालकुर्ती, मेरठ में अमृतवाणी सत्संग के अवसर पर पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने अमृतमयी प्रवचनों की वर्षा करते हुए कहा :-
परमेश्वर कल्याणकारी, दुःख निवारक, सर्वशक्तिमान है। उस परिपूर्ण परमात्मा का सिमरन तभी होता है जब हम अपने मन को उसके नाम में सौंप दें। जब हम मनमती को छोड़ कर गुरुमती को धारण करें ।
मन तो एक ही है और इसे हमने जगत के विषयों में लगाया हुआ है, जिसके कारण इस मन में गुरु एवं प्रभु के नाम की मूर्ति की स्थापना नहीं हो पाती। हमारा मन बाहरी वृत्तियों में लगा रहता है तथा मन एकाग्र नहीं हो पाता । इन्हीं वृत्तियों के कारण हमारा मन परमात्मा के भजन में नहीं लगता । हम सारा जीवन दूसरे लोगों के दोषों को ढूँढने में लगे रहते हैं अपने दोषों को नहीं देखते । इसके कारण हमारे दोष तो समाप्त नहीं होते बल्कि हमारी दृष्टि और सोच दोनों दूषित हो जाते हैं। परिणामवश हम परमात्मा के नाम, सुमिरन से बहुत दूर हो जाते हैं।
संत महापुरुष समझाते हैं की अपनी सोच को सकारात्मक बनायें, अपना निरिक्षण स्वयं करें, अपने दोषों को ढूंढकर उसे दूर करें और प्रभु के पावन नाम का सुमिरन करें ।
श्री शक्तिधाम मंदिर , लालकुर्ती,
अमृतवाणी सत्संग ,
पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी,
प्रस्तुति राकेश खुराना

गुरु मिले तो मुहब्बत के राज खुलते हैं , निजात मिलती है सारे गुनाह धुलते हैं: संत दर्शन सिंह जी महाराज

संत और महापुरुष पौराणिक काल से अपनी अमर वाणी में गुरु की महिमा का वर्णन करके समाज का मार्ग दर्शन करते आ रहे हैं |प्रस्तुत है ऐसे ही दो महापुरुषों की वाणी के कुछ शब्द
[१]गुरु बिन कभी न उतरे पार ।
नाम बिन कभी न होय उधार ।
शब्द : स्वामी शिवदयालसिंह जी महाराज
संत दर्शन सिंह जी महाराज ने भी अपने एक रूहानी शेर में फ़रमाया है :-
[२]गुरु मिले तो मुहब्बत के राज खुलते हैं ।
निजात मिलती है सारे गुनाह धुलते हैं ।।
भाव : स्वामीजी महाराज हमें समझाते हैं हमें काल के दायरे से बाहर निकलना है किसी गुरु के बिना हम ऐसा नहीं कर सकते । हमें या ऐसे गुरु की तलाश करनी चाहिए जो स्वयं रूहानियत के रास्ते पर चलता हो, एक ऐसा महापुरुष जो प्रभु के हुक्म से यहाँ भेजा गया हो ।ऐसा गुरु जब हमें परमात्मा के शब्द से जोड़ता है तो हमारा उद्धार संभव है
: स्वामी शिवदयालसिंह जी महाराज ,
रूहानी शायरी के शिरोमणि संत दर्शन सिंह जी महाराज,
प्रस्तुति राकेश खुराना

चारि पदारथ जे को मांगै, साध जना की सेवा लागै

चारि पदारथ जे को मांगै, साध जना की सेवा लागै
जे को आपुना दुखु मिटावै, हरि-हरि नामु रिदै सद गावै
जे को अपुनी सोभा लोरै, साध संगी इह हउमै छोरै
जे को जनम मरण ते डरे , साध जना की सरनी परै .
भाव: चारों पदार्थों ( धर्म, अर्थ,काम,मोक्ष) में से कोई कुछ चाहे तो उसे सद्गुरु की सेवा करनी चाहिए. अगर किसी को
दुःख और कष्टों से छुटकारा पाने की इच्छा हो तो उसे अपने आन्तरिक ह्रदय आकाश की गहराई में जाकर शब्द (नाम)
के साथ संपर्क स्थापित करना चाहिए. अगर किसी को अपनी प्रसिद्धि और नाम की इच्छा हो तो किसी संत की संगत
में जाकर अपने अहंकार का त्याग करना चाहिए. अगर किसी को जीने- मरने के कष्ट से डर लगता है तो किसी संत
के चरण कमलों का सहारा ढूँढना चाहिए.
वाणी गुरु अर्जुन देव जी,
प्रस्तुति राकेश खुराना

जो कुछ किया साहिब किया , ता तें भया कबीर

संत कबीर दास हरी की महिमा का वर्णन करते हुए फरमाते हैं

हुए ना कुछ किया न करि सका , ना करने जोग सरीर ।
जो कुछ किया साहिब किया , ता तें भया कबीर ।

भावर्थ

जो कुछ किया साहिब किया , ता तें भया कबीर

जो कुछ किया साहिब किया , ता तें भया कबीर

जब कबीर साहब काशी में प्रकट हुए , तो पंडित और काज़ी , दोनों विरोधी हो गए क्योंकि उनका मार्ग कुछ और था । जब बातचीत और वाद-विवाद में पूरे न उतर और सके , तो उनको एक शरारत सूझी । कबीर साहब सचखंड से आए थे और ये पंडित और काज़ी बाहर (इन्द्रियों के घाट पर) बैठे थे । मुकाबले में पूरे कैसे उतरते ? उन्होंने बाहर दूर -दूर तक पत्र भेज दिए कि काशी में एक सेठ कबीर साहब हैं , उनके घर अमुक तारीख़ को यज्ञ है , जहाँ तक हो सके जरुर आएँ । जब वह तारीख़ आई , तो लोग हजारों की संख्या में आ गए और पूछने लगे कि सेठ कबीर साहब का घर कहाँ है ? कबीर साहब तो एक साधारण जुलाहे थे , यह सुनकर झाड़ियों में जा छिपे । उधर मालिक (प्रभु) ने कबीर का रूप धर कर सारा सामान तैयार किया । सारी दुनिया खा गई । सभी जाते हुए कहते जाते कि ‘ धन्य है कबीर ।’ जब कबीर साहब को पता लगा , तो कहते हैं –
ना कुछ किया न करि सका , ना करने जोग सरीर ।
जो कुछ किया साहिब किया , ता तें भया कबीर ।
वे अपना नाम ही नहीं रखते हैं , बल्कि कहते हैं कि जो कुछ किया उस हरि ने किया है । जो सब कुछ वाहेगुरु को कुर्बान कर देता है , वाहेगुरु भी उसके सभी काम स्वयं करता है ।
संत कबीर दास जी की वाणी ,
साम्प्रादाईक सौहार्द ,
प्रस्तुति राकेश खुराना

साच कहूँ सुन लेहो सबै जिन प्रेम कियो तिनही प्रभु पायो

साच कहूँ सुन लेहो सबै जिन प्रेम कियो तिनही प्रभु पायो

साच कहूँ सुन लेहो सबै जिन प्रेम कियो तिनही प्रभु पायो

हमारे जीवन में प्रेम का विशेष महत्त्व है मन मंदिर में प्रेम भाव उत्पन्न करके ही प्रभु को पाया जा सकता है|इस विषय पर हमारे महा पुरुषों ने भी कहा है कि हमारी आत्मा प्रेम का स्वरूप है और प्रभु को पाने का साधन भी प्रेम है । जितने साधन , पूजा – पाठ आदि हम करते हैं , इसीलिए करते हैं कि हमारे अंतर में प्रभु के लिए प्यार बने। यह सब करते हुए प्रभु का प्यार नहीं जागा तो क्या फायदा ?
” सद साल इबादत कुनद नमाज़ी नेस्त
कसे को इश्क नदारद खुद राज़ी नेस्त ”
अर्थात सौ साल इबादत करता रहे , वह सही मायनों में नमाजी नहीं बन सकता । जिसके अंतर में प्रभु का प्रेम नहीं उभरा , वह प्रभु के भेद को कैसे पा सकता है ?
दसम गुरु साहब ने फ़रमाया –
” साच कहूँ सुन लेहो सबै जिन प्रेम कियो तिनही प्रभु पायो ।
गुरु गोबिंद सिंह जी की वाणी ,
प्रस्तुति राकेश खुराना

संत अपना प्यार सर्वत्र फैलाकर मानव को प्रेम और भक्ति के मार्ग पर लाते हैं

संत अपना प्यार सर्वत्र फैलाकर मानव को प्रेम और भक्ति के मार्ग पर लाते हैं

संत अपना प्यार सर्वत्र फैलाकर मानव को प्रेम और भक्ति के मार्ग पर लाते हैं

संत महिमा अपार है |संत हमारे व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं|संत ही हमें ईश्वरीय प्रेम का अनुभव करते हैं|
संत की महिमा का वर्णन करते हुए बताया गया है कि संत प्रेम का साकार रूप होते हैं । वे हमें सिखाते हैं कि हम अपना जीवन किस तरह का बनायें । संत जानते हैं कि आत्मिक विकास की प्राप्ति के लिए हममें नैतिक गुणों का होना जरुरी है क्योंकि इन सदगुणों में प्रेम छिपा होता है ।संत अपना प्यार सर्वत्र फैलाकर हमें प्रेम और भक्ति के मार्ग पर लगा देते हैं । प्रभु के धाम तक पहुँचने के लिए हमें प्राणिमात्र के प्रति प्रेम भरा ह्रदय रखना होगा । इसप्रकार का प्रेमपूर्ण जीवन अपना लेने पर हमारा जीवन प्रभु तक पहुँचने योग्य हो जायेगा और फिर संत हमें ईश्वरीय प्रेम का स्वाद चखाकर हममें उस अमृत को ज्यादा से ज्यादा पाने की इच्छा जगाते हैं ताकि हम अंतर में उतर जाएँ । जितना हम अंतर में जायेंगे , हमें उतना ही अधिक ईश्वरीय प्रेम का अनुभव प्राप्त होगा । आखिर में जब हम सचखंड पहुँच जाते हैं , हमें संत की आत्मिक महानता का अनुभव होता है ।
प्रस्तुति राकेश खुराना

कान्हा अब तो आ जाओ

म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा,
तन मन धन सब भेंट धरुँगी, भजन करूंगी तुम्हारा,
तुम गुणवंत सुसाहिब कहिये, मोमें ओगुण सारा,
में निगुनी कछु गुण नहीं जानू, तुम हो बक्शणहारा
मीरा कहे प्रभु कब रे मिलोगे, तुम बिन नैन दुखारा.

कान्हा अब तो आ जाओ

कान्हा अब तो आ जाओ

संत मीराबाई जी प्रभु को विरह वेदना प्रकट करते हुए कहती हैं कि आप मेरे
घट मंदिर में विराजो. मैं अपना तन, मन, धन सबकुछ आपको भेंट करुँगी और
आपका गुणगान करुँगी. आप सर्वगुण संपन्न हैं मैं अवगुणों का भंडार हूँ. मुझमें कोई
गुण नहीं है. मैं पापी हूँ और आप बक्शणहारे हो.
आगे मीरा बाई जी कहती हैं हे प्रभु ! आप की राह निहारते-निहारते मेरे नयन दुखने लगे
हैं आप मेरे ह्रदय में कब पधारोगे?
मीरा वाणी,
प्रस्तुति राकेश खुराना

प्रभु सब के ह्रदय में विराजमान हैं

श्रीमदभागवद गीता के अनंत ज्ञान के सागर की कुछ बूँदें

प्रभु सब के ह्रदय में विराजमान हैं

प्रभु सब के ह्रदय में विराजमान हैं

परमात्मा सम्पूर्ण ज्योतियों की ज्योति तथा अज्ञान से अत्यंत परे हैं. परमात्मा ज्ञान स्वरुप एवं ज्ञान से प्राप्त
करने योग्य हैं. प्रभु सब के ह्रदय में विराजमान हैं.
शब्द का प्रकाशक कान है. स्पर्श का प्रकाशक त्वचा है. रूप का प्रकाशक नेत्र है. रस का प्रकाशक जिव्ह्या है.
गंध का प्रकाशक नासिका है. इन पाँचों इन्द्रियों का प्रकाशक मन है. मन का प्रकाशक बुद्धि है. बुद्धि का प्रकाशक
आत्मा है एवं आत्मा का प्रकाशक परमात्मा है. परम पिता परमात्मा का प्रकाशक कोई नहीं है.
जैसे सूर्य मैं अन्धकार कभी नहीं आ सकता इसी प्रकार परम प्रकाशक परमात्मा में अज्ञान कभी नहीं आ सकता है
श्रीमदभागवद गीता,
प्रस्तुति राकेश खुराना .

मनुष्य में विशेषता भगवान की ही देन है

संतजन मनुष्यों को समझाते हुए कहते हैं कि मनुष्य में जो भी विशेषता आती है, वह सब भगवान से ही आती है.
अगर भगवान में विशेषता न होती तो वह मनुष्य में कैसे आती? जो वस्तु अंशी में नहीं है, वह अंश में कैसे आ सकती
है? जो विशेषता बीज में नहीं है वह वृक्ष में कैसे आएगी?

मनुष्य में विशेषता भगवान की ही देन है

मनुष्य में विशेषता भगवान की ही देन है


उन्ही भगवान कवित्व शक्ति कवि में आती है, उन्हीं की वक्तृत्व शक्ति वक्ता मैं आती है! उन्ही की लेखन शक्ति
लेखक में आती है, उन्ही की दातृत्व शक्ति दाता में आती है.
जिनसे मुक्ति, ज्ञान, प्रेम आदि मिले हैं उनकी तरफ दृष्टि ना जाने से ही ऐसा दीखता है कि मुक्ति मेरी है, ज्ञान मेरा
है, प्रेम मेरा है. यह तो देने वाले भगवान् की विशेषता है कि सबकुछ देकर भी वे अपने को प्रकट नहीं करते, जिस से
लेने वाले को वह वस्तु अपनी ही मालूम होती है. मनुष्य से यह बड़ी भूल होती है कि वह मिली हुई वस्तु को तो अपनी
मान लेता है किन्तु जहाँ से वह मिली है उसको अपना नहीं मानता.
संतवाणी
प्रस्तुति राकेश खुराना

राम चार प्रकार के हैं

संत कबीर दास के कथनानुसार राम चार प्रकार के हैं , उन्होंने फ़रमाया है :-
एक राम दशरथ का बेटा , एक राम घट-घट में बैठा |
एक राम का सकल पसारा , एक राम सबहूँ ते न्यारा ||
अर्थात: [१]एक राम तो राजा दशरथ के पुत्र थे जिन्होंने यहाँ राज किया . वो एक आदर्श पुत्र , आदर्श पति , आदर्श भाई तथा आदर्श राजा थे . जब भी हम अपने मुल्क की बेहतरी की दुआ करते हैं तो यही कहते हैं कि यहाँ राम राज्य हो जाए.
[२]दूसरा वो राम है, जो हमारे घट – घट में बैठा है और वो हमारा मन . उसका`काम है कि वो हमें परमार्थ के रास्ते में तरक्की न करने दे , यद्यपि हमारा मन भी ब्रह्म का अंश है , ब्रह्म का स्रोत है परन्तु वह अपने स्रोत को भूल चूका है और संत हमें समझाते हैं कि ” मन बैरी को मीत कर ”
[३]तीसरा वो राम है जिसका ये सारा पसारा है इसमें माया भी है , काम – क्रोध – लोभ – मोह – अहंकार भी है बाकि भी हर तरह की कशिश है , हमें इनसे बचने का प्रयास करना है .
[४]चौथा राम सबसे न्यारा है, सबसे ऊंचा है ,सबसे बड़ी ताकत है , वही इस सृष्टि का कर्ता-धर्ता है ,
हमारे जीवन का लक्ष्य तभी पूरा होता है जब हम , जितनी भी अवस्थाएँ हैं , उन सबसे गुजरकर प्रभु को पा लें. संत जब भी बात करते हैं , वो उसी राम का जिक्र करते हैं
संत कबीर दास की वाणी
प्रस्तुति राकेश खुराना