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Tag: ल क अडवाणी के ब्लॉग से

अडवाणी ने अब चर्चिल के माध्यम से इंडियन बिस्मार्क पटेल की क्षमता की प्रशंसा की

भारतीय जनता पार्टी[भाजपा]के वयोवृद्ध नेता और वरिष्ठ पत्रकार लाल कृष्ण अडवाणी ने एक बार फिर किताबों की खोदाई करके लोह पुरुष सरदार वल्ल्भ भाई पटेल की राष्ट्र भक्ति और न्रेतत्व क्षमता को तत्कालीन नेताओं से सर्व्श्रेस्थ बताया | अपने नए ब्लॉग के टेल पीस [TAILPIECE ]में अडवाणी ने बलराज कृष्णा की पुस्तक के माध्यम से बताया कि सरदार पटेल ने वर्ल्ड वार २ के विजेता अदम्य विंसेंट चर्चिल को दृढ़ता से जवाब देने के बावजूद उसकी प्रशंसा प्राप्त की|
सेकंड वर्ल्ड वार में विजय प्राप्त करने के उपरांत भी इंग्लैंड के शाही टाइटल से सम्राट शब्द हट गयाइससे क्षुब्ध हो कर चर्चिल ने जून १९४८ में भारत और भारतीयों पर जहर उड़ेलना शुरू कर दिया| चर्चिल ने कहा की भारत में अब रासकल्स [rascals, ]दुर्जन[ Rogues ] पिंडारी [फ्री बूटर्स]के हाथों में पॉवर आ जायेगी
जो भूसे के तरह कुछ ही सालों में उड़ जायेगी|जब ये जहर उगला गया उस समय सरदार पटेल देहरादून में बीमार पड़े हुए थे लेकिन उन्होंने चर्चिल को तुरंत कटु आलोचनापूर्ण उत्तर भेज दिया | सरदार पटेल ने वर्ल्ड वार २ के विजेता चर्चिल को निर्लज्ज राजशाही के अंतिम लोकप्रसिद्द बुद्धिमत्ता से दूर डिचेर [ditcher ] बताया|इस पर कुपित होने के स्थान पर चर्चिल ने इसे गुड स्प्रिट में लिया और भारत आ रहे अपने फॉरेन सेक्रेटरी अन्थोनी ईडन[Anthony Eden ] की मार्फ़त प्रशंसा पत्र भी भेजा जिसमे लिखा था कि सरदार पटेल केवल भारतीय सीमाओं तक सीमित नहीं रहें विश्व को उनके ज्ञान +क्षमता की आवश्यकता है |

दुःख के बादल पिघलाने वाली वोह सुबह आयेगी और उसे भाजपा ही लाएगी :एल के अडवाणी

भारतीय जनता पार्टी के वयोवृद्ध नेता और वरिष्ठ पत्रकार लाल कृष्ण अडवाणी ने अपने नवीनतम ब्लॉग के टेल पीस[ TAILPIECE ] में संकेत दिया है कि यदि देश में परिवर्तन लाना है तो भाजपा से अच्छा कोई दूसरा विकल्प नहीं हो सकता |
ब्लॉगर अडवाणी ने आर्गेनाइसर[दीपाली] में छपी खबर को याद करते हुए बताया कि १९५८ में दिल्ली कारपोरेशन के चुनाव में मिली हार के गम को भुलाने के लिए उन्होंने अटल बिहारी वाजपई के साथ दोस्तोएव्स्की की क्राइम एंड पनिशमेंट [ Dostoevsky’s Crime and Punishment. ]स्टोरी पर आधारित राज कपूर स्टारर फ़िल्म “वोह सुबह कभी तो आयेगी” देखी|फ़िल्म देखने के बाद साहिर लुधियानवी के मुकेश द्वारा गए गए आशावादी गीत गाते हुए बाहर आये | गीत के बोल थे
“वोह सुबह कभी तो आयेगी,
जब दुःख के बादल पिघलेंगे
जब सुख का सागर छलकेगा
जब अम्बर झूमके नाचेगा
जब धरती नगमे गायेगी
वोह सुबह कभी तो आयेगी”
और ३० सालों के बाद १९९८ में वोह सुबह आई अटल बिहारी वाजपई प्रधान मंत्री बने |तब मैंने [अडवाणी]कहा था कि वोह सुबह आ गई है और उसे हम[बीजेपी]ही लाये हैं

अडवाणी घर बैठे ही इतिहास की खोदाई में लगे हैं और रोज अस्थि पंजर निकाल कांग्रेसियों को जवाब देने को मजबूर कर रहे हैं

झल्ले दी झल्लियां गल्लां

उत्साहित भाजपाई

ओये झल्लेया एवेंए लोगी हसाडे लाल कृषण अडवाणी जी को बुड्डा कह रहे हैं देख तो आजकल उन्होंने कांग्रेसियों की साँसे फुला दी हैं|बेशक नरेंदर भाई मोदी भाजपा की रैलियों में अपनी ताकत दिखा रहे हैं लेकिन हसाडे डड्डा आडवाणी तो घर बैठे बैठे ही अपने ब्लॉग से अपने सरदार वल्ल्भ भाई पटेल और कांग्रेसियों के जवाहर लाल नेहरू में विवाद की बात उठा कर तहलका मचा रहे हैं| हैदराबाद और अब जे & के में नेहरू की असफल पालिसी को उजागर करके रख दिया है|पहले ब्लॉग में उन्होंने नौकरशाह एम् के के नायर की किताब का हवाला दिया तो सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने नाक भोएं सिकोड़ी इस पर अब डड्डा ने नेट पर उपलब्ध रीडिफ़ के हवाले से फील्ड मार्शल सैम शा के इंटरव्यू में से जे & के कांग्रेसी नीतियों को भी खोल कर रख दिया है

झल्ला

वाकई कांग्रेसी साधू+स्वामी+संत+महात्मा [जो भी कहों] के आदेश से उन्नाव के किले की खोदाई से खजाना तो निकला नहीं हां आपजी के अडवाणी की इतिहास की खोदाई में जरुर ऐतिहासिक अस्थि पंजर मिल रहे हैं और ये अस्थि पंजर ऐसे हैं कि जिन पर कांग्रेसी मनीष तिवारी तक को भी जवाब देना पड़ रहा है |इसीलिए कहा जाता है कि घर की बारात में एक बुजुर्ग का होना लाजमी है वक्त -बेवक्त बड़े काम आता है

मुगलों के प्रति नाराजगी प्रकट करने के लिए ही राजस्थान में स के स्थान पर ह का प्रयोग प्रारम्भ हुआ L K Advani’s blog

भजपा के पी एम् इन वेटिंग और वरिष्ठ पत्रकार एल के अडवाणी ने अपने नवीनतम ब्लॉग के पश्च्य लेख [टेल पीस] में बताया कि मुगलों के प्रति नाराजगी प्रकट करने के लिए ही राजस्थान में स के स्थान पर ह का प्रयोग प्रारम्भ हुआ|
प्रस्तुत है सीधे एल के अडवाणी के ब्लॉग से :
मैंने अपने जीवन के प्रारम्भिक बीस वर्ष कराची (सिंध) में बिताए। 1947 में मैंने कराची छोड़ा और अगले दस वर्ष राजस्थान में रहा।
मुझे याद आता है कि जब मैं पहली बार जोधपुर गया तो वहां किसी से मैंने पूछा ”समय क्या है?” उसने जो जवाब दिया वह कुछ ऐसा था जिसे मैं समझ नहीं पाया। जब मैंने दोबारा यह सवाल पूछा तो उसने साफ-साफ जवाब दिया ”साढ़े सात”! मैंने उन्हें कहा कि पहले आपने जो हिन्दी में बताया था वह मेरी समझ में नहीं आया।
बाद में मेरे एक मित्र ने मुझे एक किस्सा दोहराया। उसने बताया कि राजस्थान बीस से ज्यादा रियासतों से बना है। प्रत्येक रियासत के लोग स्वाभाविक रुप से अपनी रियासत पर गर्व करते थे। उसने यह भी कहा कि सामान्य तौर पर महाराणा प्रताप के राज्य मेवाड़ को लोग, वहां के योध्दाओं के शौर्य एवं वीरता के चलते समूचे राजस्थान में गर्व से देखा जाता है।
यह भी समान रुप से दृष्टव्य था कि जयपुर राज्य सदैव दिल्ली के मुगल सुल्तानों के सामने झुकने को तैयार रहता था, जिसके फलस्वरुप उनका सम्मान नहीं था।
उस समय एक दौर ऐसा आया जब दिल्ली के शासकों ने जयसिंह और मान सिंह को बुलाकर कहा कि मुगल सल्तनत जयपुर के महाराजा को सवाई उपाधि से विभूषित करना चाहती है, जिसका अर्थ होता था कि जबकि अन्य राजाओं की हैसियत एक के बराबर होगी परन्तु जयपुर के राजा की सवाई – यानी एक और चौथाईA
मुझे यह किस्सा सुना रहे मेरे मित्र ने बताया कि इस घटना के बाद से सभी अन्य रियासतों के लोगों ने तय किया कि वे स के बजाय ह सम्बोधन बुलाएंगे। वे जयपुर के राजा को सवाई नहीं हवाई बुलाएंगे। अत: उसने निष्कर्ष रुप में कहा कि जब आपने मुझसे समय पूछा तो ”साढ़े सात” कहने के बजाय मैंने ”हाडे हाथ” कहा जिसे आप समझ नहीं पाए।
(स का ह में रुपान्तरण एक सामान्य भाषायी परिवर्तन है। सप्ताह बना हफ्ता ( हिन्दू भी सिन्धु से उत्पन्न हुआ है। लेकिन इस मामले में मुगलों के प्रति नाराजगी इस किस्से में प्रकट होती है।)

एल के अडवाणी को क्या राजनीतिक सन्यास देने की तैय्यारी कर ली गई थी

गोवा में नरेन्द्र मोदी को चुनावी समिति का अध्यक्ष बनाये जाने के साथ ही भाजपा के पी एम् इन वेटिंग वरिष्ठ पत्रकार लाल कृषण अडवाणी को राजनीतिक सन्यास देने की तैय्यारी कर ली गई थी और इसकी भनक अडवाणी को लग गई तभी उन्होंने स्वयम ही इस्तीफा दे कर आर एस एस का सारा गेम ही उलटा कर दिया| | अपने ब्लॉग के टेलपीस (पश्च्यलेख) में उन्होंने इसका इशारा भी किया है|

प्रस्तुत है ब्लाग का सीधे टेलपीस (पश्च्यलेख):

फिल्म कलाकार कमल हासन ने जिस पुस्तक [ ग्रे वॉल्फ: दि एस्केप ऑफ एडोल्फ हिटलर ]का वायदा किया था, वह उन्होंने मुझे भेजी। 350 पृष्ठों वाली यह पुस्तक काफी शोधपरक है। दोनों लेखकों[ साइमन डूंस्टान+शोधपरक पत्रकार गेर्राड विलियम्स ]ने मिलकर सत्रह बार अर्जेन्टीना का दौरा किया, जहां माना जाता है कि 1962 तक वह वहां रहा। इस पुस्तक का पिछला आवरण इस रुप में सार प्रस्तुत करता है:
शोधपरक पत्रकार गेर्राड विलियम्स तथा सैन्य इतिहासकार साइमन डूंस्टान ने वर्षों के अपने शोध पर यह निष्कर्ष निकाला कि बर्लिन से एडॉल्फ हिटलर का पलायन-ऑपरेशन फ्यूरलैण्ड-को नाजियों ने 1943 से ही अत्यन्त गोपनीयता से तैयार किया था। इस सम्बन्ध में काफी प्रत्यक्षदर्शियों और साक्ष्यों के अनुसार यह आपरेशन सफल रहा और हिटलर दक्षिण अमेरिका को पलायन कर गया जहां वह 1962 में अपनी वास्तविक मृत्यु तक रहा।

एल के आडवानी के ब्लॉग से:पाठ्यक्रम में योगी श्री नारायण गुरु- के प्रेरणादाई संघर्ष को भी जोड़ें

नव वर्ष के स्वागत में एन डी ऐ के सर्वोच्च नेता एल के आडवानी ने अपने ब्लॉग में मौजूदा शिक्षा पाठ्यक्रम में शामिल इतिहास के पन्नो में केरल के सर्वमान्य योगी तथा सिध्द श्री नारायण गुरु- के अस्पृश्यता और जातिवाद के विरुध्द प्रेरणादाई अथक संघर्ष को भी जोड़ कर पाठ्यक्रम में एम पूंजी के साथ मनुष्यों का निर्माण किये जाने पर जोर दिया है|
प्रस्तुत है एल के अडवाणी के ब्लाग से उद्दत उनके विचार

एल के आडवानी के ब्लॉग से:

नव वर्ष की शुरुआत हो चुकी है। मुझे इसकी प्रसन्नता है कि दिसम्बर, 2012 के अंतिम दिन मैं केरल में था और एक महान योगी तथा सिध्द श्री नारायण गुरु-अस्पृश्यता और जातिवाद के विरुध्द जिनके अथक संघर्ष की महात्मा गांधी ने भी प्रशंसा की-की पुण्य स्मृति से जुड़े तीर्थस्थल शिवगिरी जाने का सौभाग्य मिला।
श्री नारायण गुरु का जन्म ऐसे समय पर हुआ जब अस्पृश्यता का अपने घृणित रुप में चलन था। ऐसी भी गलत धारणा प्रचलित थी कि कुछ लोगों की छाया भी अन्यों को अपवित्र कर देती थी। एक समान आराध्य और धर्म को मानने वाले लाखों श्रध्दालुओं में से कुछ को मंदिर में प्रवेश से वंचित कर दिया गया था।
मुझे स्मरण आता है कि तिरुअनंतपुरम से लगभग 45 किलोमीटर दूर वरकला स्थित शिवगिरी मठ में मुझे 1987 में आमंत्रित किया गया था। सन् 1932 से प्रत्येक वर्ष होने वाले तीन दिवसीय समारोह में मुख्य अतिथि के रुप में मुझे बुलाया गया था। खराब मौसम के चलते तिरुअनंतपुरम जाने वाली विमान सेवा रद्द हो गई थी और मैं नहीं पहुंच सका। शिवगिरी, वरकला पहाड़ियों में स्थित है जहां गुरु (नारायण) के अनुयायी लाखों की संख्या में उनकी समाधि, और उनके द्वारा स्थापित शारदा (सरस्वती) मंदिर के दर्शन करने पहुंचते हैं। शिवगिरी में सरस्वती की प्रतिमा स्थापित करने से पूर्व श्री नारायण गुरु ने अरुविप्पुरम में शिव मंदिर स्थापित किया। अत: अब 1987 में मैं वहां नहीं पहुंच सका तो किसी तरह अगले वर्ष मैं अरुविप्पुरम की यात्रा कर सका। इसलिए इस वर्ष अपने उद्धाटन भाषण की शुरुआत मैंने पीताम्बर वस्त्र धारण किए विशाल संख्या में उपस्थित श्रध्दालुओं से इस क्षमा याचना के साथ की कि मैं इस पवित्र स्थल पर 25 वर्ष बाद पहुंचा हूं।
इस तीन दिवसीय आयोजन की श्री नारायण गुरु ने योजना बनाई थी और 1928 में उनकी मृत्यु से पूर्व इसे घोषित किया गया। यह प्रत्येक वर्ष 30,31 दिसम्बर और 1 जनवरी को आयोजित किया जाता है। 30 दिसम्बर को इस आयोजन की औपचारिक शुरुआत राज्य के मुख्यमंत्री द्वारा की गई। दूसरे दिन के तीर्थदनम सम्मेलन, के इस वर्ष का उद्धाटन मुझे करने को कहा गया था। इसकी अध्यक्षता केंद्रीय मंत्री वायलर रवि ने की। अंतिम दिन अनेक प्रमुख विद्वानों ने श्री नारायण गुरु द्वारा प्रतिपादित आचार संहिता (Code of Ethics) के विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार प्रस्तुत किए।
अपने भाषण में मैंने एक दिन पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चाण्डी द्वारा की गई घोषणा कि 2013 से श्री नारायण गुरु की शिक्षाओं को केरल राज्य में स्कूली पाठयक्रम में जोड़ा जाएगा, का स्वागत किया।
वस्तुत: यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारतीय विद्यालयों में इतिहास की पढ़ाई अधिकांशतया राजाओं, उनके वंश, उनके युध्दों और शोषण पर ही केंद्रित रहती है। हमारे विध्दानों, साधु-संतो के अविस्मरणीय योगदान से सामान्यतया बच्चों को अक्सर इस आधार पर वंचित रखा जाता है कि एक सेकुलर देश में धर्म वर्जित कर्म है। यह एक बेहूदा दृष्टिकोण है। अत: शिवगिरी में अपने भाषण में मैंने केंद्रीय मंत्री वायलर रवि से अनुरोध किया कि केरल द्वारा की गई पहल को केंद्रीय और अन्य राज्यों में भी अपनाया जाए। यदि स्वामी दयानन्द सरस्वती, श्री रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानन्द जैसे संतों की शिक्षाओं को पाठयक्रमों का सामान्य हिस्सा बना दिया जाए तो स्कूली पढ़ाई का स्तर बढ़ेगा।

प्रवासी भारतीय मंत्री श्री रवि ने कहा कि वे इस विषय को प्रधानमंत्री के ध्यान में लाएंगे।

उस दिन के अपने सम्बोधन में मैंने स्मरण किया कि स्कूल में पढ़ते समय हमें पता चला कि किसी विद्यार्थी की प्रतिभा के स्तर का आधार इस से आंका जाता था कि उसका ‘बौध्दिक स्तर‘ (इन्टेलिजेन्स क्वोशन्ट) कितना उपर या नीचे है। बाद में संयोग से एक पुस्तक ‘इ क्यू‘ यानी ‘भावात्मक स्तर‘ (इमोशनल क्वोशन्ट) पढ़ने पर मुझे लगा कि किसी के निजी व्यक्तित्व को परखने के लिए ‘बौध्दिक स्तर‘ (इन्टेलिजेंस क्वोशन्ट) महत्वपूर्ण होगा परन्तु उसका इ क्यू यानी ‘भावात्मक स्तर‘ पर भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। ‘भावात्मक स्तर‘ से तात्पर्य यह है कि कैसे एक व्यक्ति क्रोध, द्वेष इत्यादि जैसे भावों को ग्रहण करता है। उस दिन मैंने कहा कि जो केरल ने किया है और जो मैंने देशभर के शैक्षणिक संस्थानों को करने के लिए अनुरोध किया, कुछ ऐसा है जो हमारे सभी देशवासियों का ‘आध्यात्मिक स्तर‘ (स्पिरिचवल क्वोशन्ट) भी बढ़ाएगा। एस क्यू (स्पिरिचवल क्वोशन्ट) धारणा गढ़ते समय मेरे मन में किसी धर्म या पंथ का विचार नहीं था, मैं तो सिर्फ उन नीतिपरक और नैतिक मूल्यों के बारे में सोच रहा था जो एक विद्यार्थी अपने संस्थान से ग्रहण कर सकता है।

सन् 1902 में अपनी मृत्यु से कुछ समय पूर्व स्वामी विवेकानन्द जी ने टिप्पणी की थी कि देश को एक ऐसी मनुष्य निर्माण मशीन की जरुरत है जो एम पूंजी के साथ मनुष्यों का निर्माण कर सके। उनके दिमाग में ऐसे मनुष्य रहे होंगे जो आइ क्यू, इ क्यू और एस क्यू सम्पन्न हों यानी वे मनुष्य जो अपवाद रुप उच्च चरित्र और असाधारण योग्यता तथा प्रतिभा सम्पन्न हो।
यदि हमारे शैक्षणिक संस्थान स्वामी विवेकानन्द द्वारा विचारित मनुष्य निर्माण मशीनरी को अमल में लाने में सफलता प्राप्त करते हैं तो यह देश के लिए अनुकरणीय सेवा होगी।
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शिवगिरी की यात्रा की पूर्व संध्या पर, तिरुअनंतपुरम में ही, वर्षों से मेरे पार्टी सहयोगी और श्री वाजपेयी की सरकार में मेरे मंत्रिमण्डलीय सहयोगी श्री ओ. राजागोपालजी के सार्वजनिक जीवन में पचास वर्ष पूरे करने के उपलक्ष्य में एक भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया था। केरल यूनिवर्सिटी के खचाखच भरे सीनेट सभागार में सभी वक्ताओं ने केरल के हमारे नेता की योग्यता, प्रामाणिकता और एनडीए सरकार में केंद्रीय मंत्री के रुप में केरल के कल्याण के लिए दिए गए योगदान की भूरि-भूरि प्रशंसा की। लेकिन मैं महत्वपूर्ण समझता हूं उस दिन राजगोपालजी का अभिन्न्दन करने आने वाले नेताओं की उपस्थिति को। मंच पर समूचे राजनीतिक और सामाजिक वर्गों के प्रतिनिधि उपस्थित थे।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रुप में, मैंने सभी राजनीतिक कार्यकर्ताओं से दलगत दायरों से ऊपर एकजुट होकर तथा ईमानदारीपूर्वक भारत को दुनिया में अग्रणी बनाने के लिए काम करने का अनुरोध किया। विपक्ष के नेता वी.एस. अच्युतानन्दन ने मुख्य भाषण देते हुए कहा कि यद्यपि राजनीति में वह और श्री राजगोपाल एक-दूसरे के विरोधी धु्रव पर हैं, परन्तु तब भी वे गहरे मित्र हैं। हालांकि, माकपा और भाजपा ने आपातकाल के विरुध्द संघर्ष की छोटी अवधि में मिलकर काम किया, और इस अवधि के दौरान वह तथा श्री राजगोपाल कारावास में एक साथ बंदी थे।
कार्यक्रम की अध्यक्षता गांधी स्मारक निधि के चेयरमैन पी. गोपीनाथन नायर ने की। उनके अलावा सम्बोधित करने वालों में थे स्वास्थ्य मंत्री वी. एस. शिवाकुमार, भाकपा के राज्य सचिव पानियन रविन्द्रन, कवि ओ.एन.वी. कुरुप, महापौर के. चंद्रिका, भाजपा के वरिष्ठतम सहयोगी परमेश्वरन, राज्य भाजपा के अध्यक्ष वी. मुरलीधरन, केरल कांग्रेस के नेता वी. सुरेन्द्रन पिल्लई, साइरो-मलानकरा कैथोलिक चर्च ऑक्सिलॅरी बिशप सैम्युल मार इरेनियस, स्वामी तत्वारुपानंदा और एन आई एम एस मेडीसिटी के मैंनेजिंग डायरेक्टर एम.एस. फैजल खान-भी थे।