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Tag: प्रस्तुति राकेश खुराना

सबकी गठरी में नाम रूपी लाल है, जड़ -चेतन की गांठ खोल कर देख लो

भीखा भूखा को नहीं , सब की गठरी लाल।
गिरह खोल नहीं जानते , ताते भये कंगाल ।
वाणी :- भीखा साहब जी

Rakesh Khurana


भाव : भीखा साहब जी कहते हैं कि सबके पल्ले में ‘नाम’ रुपी लाल बंधा पड़ा है पर उसमे जड़ -चेतन की ग्रंथि (गाँठ) बंधी पड़ी है । जब तक यह गाँठ न खुले , अर्थात पिंड से ऊपर आकर नाम का अनुभव न मिले , हम भूखे के भूखे रह जाते हैं । दौलत के होते हुए भी हम भूखे हैं परन्तु
‘नाम’ को पाकर हम सुखी हो जाते हैं । ‘नाम’ सब में परिपूर्ण है , फिर भी हम दुखी हैं ? वे कहते हैं कि हमने उसे प्रकट नहीं किया है ।
वाणी :- भीखा साहब जी
प्रस्तुति राकेश खुराना

प्रभु की रोशनी की किरण बनने से ज़िंदगी का ध्येय पूरा होगा:संत दर्शन सिंह जी

जो रूह बन के समा जाए हर रगों -पै में ।
तो फिर न शहद में लज्ज़त न सागरे – मैं में ।
वही है साज के पर्दे में , लेहन में , लै में ।
उसी की ज़ात की परछाइयाँ हर इक शै में ।
न मौज है न सितारों की आब है कोई ।

प्रभु की रोशनी की किरण बनने से ज़िंदगी का ध्येय पूरा होगा:संत दर्शन सिंह जी


तजल्लियों के उधर आफ़ताब है कोई ।
संत दर्शन सिंह जी महाराज
भाव: संत दर्शन सिंह जी महाराज फरमाते हैं जब हमारी रूह सिमटती है और प्रभु के शब्द के साथ जुडती है
तो उसमे इतनी मिठास आ जाती है जितनी न तो शहद में है , न मैं के पैमानों में है , वह तो सुरीले संगीत
में मस्त हो जाती है । बाहर के संगीत से उसका कोई मुकाबला नहीं हो सकता । जैसे लहरें समुद्र का हिस्सा
होती हैं , वैसे ही अंतर्मुख होने पर हम उस शब्द का हिस्सा बन जाते हैं , प्रभु में लीन हो जाते हैं । वह मस्ती
न इन सितारों में है , न आसमान में है , न सूर्य में है , न चंद्रमा में है । इस मंडल के पार जो दुनिया है उसका
अपना सूर्य है , उनका इशारा प्रभु की ओर है । प्रभु की रोशनी से ही चारों ओर उजाला है । उस सूर्य की हमें
किरणें बनना है । जब हमारी अंदरूनी आँख इस सूर्य को देखेगी तो हमारी ज़िंदगी का ध्येय पूरा हो जायेगा ।
सावन कृपाल रूहानी सत्संग के संत दर्शन सिंह जी महाराज की रूहानी शायरी
प्रस्तुति राकेश खुराना

मुझे चरणों में ही रखो ताकि में अन्दर बाहर आपके दर्शन कर सकूँ ।

जनम जनम के बीछुरे हरि अब रह्यो न जाय ।
क्यों मन कू दुःख देत हो बिरह तपाय तपाय ।

मुझे चरणों में रखो ताकि में अन्दर बाहर आपके दर्शन कर सकूँ ।

भाव : दयाबाई जी कहती हैं हे प्रभु ! मैं जन्म जन्म से आपसे बिछुड़ी हुई हुईं और आगे मैं ज्यादा
इंतजार नहीं कर सकती ।यह विरह मुझे हर वक्त तडपा रहा है आप अंतर में भी आ जाओ
और बाहर भी मुझे अपने चरणों में रखो ताकि में अन्दर बाहर आपके दर्शन कर सकूँ ।
वाणी : दयाबाई जी
प्रस्तुति राकेश खुराना

गिरह खोल नहीं जानते , ताते भये कंगाल

भीखा भूखा को नहीं , सब गठरी लाल ।
गिरह खोल नहीं जानते , ताते भये कंगाल ।

गिरह खोल नहीं जानते , ताते भये कंगाल


भाव : भीखा साहब कहते हैं इस जगत में नाम रुपी लाल सब के पास है , कोई भी
ऐसा नहीं है जिसके पास यह दौलत नहीं है । परन्तु उसमे जड़ -चेतन की
गाँठ बँधी पड़ी है । जब तक यह गाँठ न खुले अर्थात इस पिंड से ऊपर उठकर
नाम का अनुभव न मिले , हम भूखे के भूखे रह जाते हैं ।
वाणी : भीखा जी
प्रस्तुति राकेश खुराना

जाग पियारी अब का सोवै रैन गई दिन काहे को खोवै

जाग पियारी अब का सोवै |
रैन गई दिन काहे को खोवै ||
जिन जागा तिन मानिक पाया |
तैं बोरी सब सोय गँवाया ||

जाग पियारी अब का सोवै रैन गई दिन काहे को खोवै


वाणी : संत कबीर दास जी
भाव : यहाँ कबीर दास जी हमारी आत्मा को पुकार रहे हैं , वह आत्मा जो सोई हुई है ,
प्रभु से बहुत दूर है | आत्मा की नींद से तात्पर्य है कि काम , क्रोध , मोह , लोभ
और अहंकार के कारण हम अपने आपको भूल चुके हैं | अब रात गुजर चुकी है ,
ऐ इन्सान ! तेरी अँधेरी रात अब समाप्त हो चुकी है | हमारी आत्मा के लिए अँधेरी
रात वह समय है जो हम भिन्न – भिन्न योनियों में गुजारते हैं | मानव चोला
धारण करने के बाद भी यदि हम प्रभु के शब्द के साथ नहीं जुड़े तो हमारे लिए
दिन भी अँधेरी रात के समान है |
जो जाग उठा है , उसने रत्न को पा लिया है अर्थात जो प्राणी सतगुरु की शरण
में आ गया , वह जाग उठा है और जब सतगुरु हमें प्रभु के शब्द के साथ जोड़ देता
है तो हमें अनमोल खजाने मिल जाते हैं |कबीर दास जी कहते हैं कि ऐ आत्मा ! तू
पागल की तरह अपनी जिंदगी गुजार रही है , तू सोती ही रहती है , इसी कारण प्रभु
ने जो रूहानियत के खजाने तुम्हारे अन्दर रखे हुए हैं , तुझे उसकी खबर ही नहीं है
|वाणी : संत कबीर दास जी
प्रस्तुति राकेश खुराना

प्रभु आप मुझ सेवक को एक पूर्ण इन्सान बना दीजिए

[१]हमसरि दीनु दइआलु न तुमसरि|
अब पतीआरू किया कीजै ||

भावार्थ

संत रविदास जी मनुष्य की दयनीय हालत को बयां कर रहे हैं कि हम तो दीन हैं , लेकिन आप
(प्रभु , गुरु ) दया के महासागर हैं | आप हमारी दीन – हीन हालत पर इतनी कृपा कीजिए ताकि
जो जिंदगी और मौत का रहस्य है वह हमें समझ आ जाए|
[२]बचनी तोर मोर मनु मानै|
जन कउ पूरनु दीजै||

भावार्थ

आपके वचनों को अब मेरा मन मान गया है , गुरु के वचनों पर मेरा विश्वास दृढ हो गया है | आप मुझ
सेवक को एक पूर्ण इन्सान बना दीजिए |

प्रभु आप मुझ सेवक को एक पूर्ण इन्सान बना दीजिए

[३]हउ बलि बलि जाउ रमईया कारने |
कारन कवन अबोल रहाउ ||

भावार्थ

हे सृष्टि कर्ता ! मैं तुम पर बलिहार जाता हूँ , अपने आपको तुम पर न्यौछावर करता हूँ | आप मुझे उस शब्द
से जोड़ सकते हो जो हमें शून्य अवस्था में पहुंचा देता है , जिसमें बोलने की जरुरत नहीं , जिसे हम तभी सुनते
हैं , जब हमारे अंतर के कान खुल जाते हैं |
[४]बहुत जनम बिछुरे माधउ |
इहु जनमु तुम्हारे लेखे |

भावार्थ

हे प्रभु ! आपसे बिछड़े बहुत जन्म बीत गए हैं | चौरासी लाख योनियों में भटकने के कारण जो यह मानव चोला मिला है
यह मुझे आपके चरणों में ही बिताना है |
[५]कहि रविदास आस लगि जीवउ |
चिर भइओ दरसनु देखे ||
यह प्रार्थना संत रविदास जी महाराज प्रभु से कर रहे हैं कि मेरी आप से बहुत आशा है कि इस जीवन में ही मुझे आपके दर्शन हो जाएँ
प्रस्तुति राकेश खुराना

गुरु कृपा से परमात्मा भी सच्चा मित्र बन जाता है

विधान खूही मुंध इकेली|
ना को साथी ना को बेली |
करि किरपा प्रभि साध संग मेली |
जा फिरि देखा तो मेरा अलहु बेली ||
बाबा शैख़ फरीद
भाव : यहाँ बाबा फरीद समझा रहे हैं कि इस संसार में हमारी हालत कुँए में गिरी
हुई स्त्री के समान है जो वहां एकदम अकेली है , उसका कोई मित्र नहीं , कोई
सहायक नहीं | इसी प्रकार इस माया की दुनिया में प्रभु के सिवाय हमारा कोई
सहायक या मित्र नहीं है | परन्तु जब हम पर प्रभु की कृपा हो जाती है , हम
किसी गुरु की शरण में पहुँच जाते हैं और वह हमें अपना लेता है तो वह शुरू
से ही हमें यह अनुभव करा देता है कि अल्लाह या परमात्मा ही हमारा सच्चा
मित्र है |
प्रस्तुति राकेश खुराना

गुरु कृपा से परमात्मा भी सच्चा मित्र बन जाता है

बरसे-बरसे आनंद तेरा, मस्त मगन हो मनवा मेरा

बरसे-बरसे आनंद तेरा, मस्त मगन हो मनवा मेरा
श्री शक्तिधाम मंदिर, लाल कुर्ती में प्रवचनों की अमृतमयी वर्षा करते हुए पूज्य श्री भगत
नीरज मणि ऋषि जी ने कहा कि हम सब परमात्मा की कृपा को पाना तो चाहते हैं परन्तु
लाखों जन्मो की पाप कर्मों की धूल ने हमारी बुद्धि को आच्छादित किया हुआ है. हमारे
अंदर ईर्ष्या, द्वेष तथा अहंकार भरे हुए हैं. इसीलिए हम प्रभु की कृपा के पात्र नहीं बनते.
भक्तजन प्रभु से प्रार्थना करते हैं कि हे देव! हम पर अप्रनी कृपा रुपी बरसात कीजिये
जिससे हमारे अंतःकरण की लाखों जन्मों की धूल और ऊष्णता धुल जाए. हमारा मन
परमात्मा के भजन में लीनता लाभ करे.
” बरसे-बरसे आनंद तेरा, मस्त मगन हो मनवा मेरा”
भक्तजनों ने परमात्मा से माँगा कि हे प्रभु आपके आनंद के बादल उमड़ -उमड़ कर
हमारे अंतःकरण में बरसें जिससे हमारा मन निर्मल हो जाए, हमारे मन में किसी के
प्रति ईर्ष्या न रहे, हमारे अन्दर दूसरों को क्षमा करने की भावना पैदा हो जाये जिससे हम
परमात्मा की कृपा के पात्र बन सकें.|

उल्लेखनीय है कि पूज्य श्री भगत नीरज मणि ऋषि ने
छेत्र में धार्मिक और सामजिक सेवा की मान्यताओं को पुनः स्थापित करने में क्रान्ति कारी
पहल की है|

File Photo

कान्हा तुम्हारी राह निहारते नयन दुखने लगे

म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा,
तन मन धन सब भेंट धरुँगी, भजन करूंगी तुम्हारा,
तुम गुणवंत सुसाहिब कहिये, मोमें ओगुण सारा,
में निगुनी कछु गुण नहीं जानू, तुम हो बक्शणहारा
मीरा कहे प्रभु कब रे मिलोगे, तुम बिन नैन दुखारा.

संत मीराबाई जी प्रभु को विरह वेदना प्रकट करते हुए कहती हैं कि आप मेरे
घट मंदिर में विराजो. मैं अपना तन, मन, धन सबकुछ आपको भेंट करुँगी और
आपका गुणगान करुँगी. आप सर्वगुण संपन्न हैं मैं अवगुणों का भंडार हूँ. मुझमें कोई
गुण नहीं है. मैं पापी हूँ और आप बक्शणहारे हो.
आगे मीरा बाई जी कहती हैं हे प्रभु ! आप की राह निहारते-निहारते मेरे नयन दुखने लगे
हैं आप मेरे ह्रदय में कब पधारोगे?
मीरा वाणी

जब दिल में ख्याले सनम हो बसा , तो गैर की पूजा कौन करे.

हमारे संत सूफियों ने परमात्मा को अपने अन्दर ही तलाश कर उसकी पूजा को ही असली धर्म बताया है
अपने ही घर में खुदाई है,तो काबे में सजदा कौन करे,
जब दिल में ख्याले सनम हो बसा , तो गैर की पूजा कौन करे.

भावार्थ: सूफी संत बुल्लेशाह कहते हैं कि
मंदिर, मस्जिद और गुरूद्वारे में भगवान कहाँ मिलता है, परमात्मा तो तेरे अन्दर समाया हुआ है पहले उसे तो जान ले पहचान ले, जब सच्चे संत की शरण में जाओगे तभी वास्तविक तथ्य का पता चल पाएगा और सद्गुरु की मूर्ति को घट मंदिर में विराजमान करके उसकी आराधना करो फिर कहीं और जाने की जरूरत नहीं है.

इसी सन्दर्भ में संत कबीर दास जी फरमाते हैं,
मन मक्का दिल दवारिका, काया काशी जान,
दश द्वारे का देहरा, तामें ज्योति पिछान.