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एक ‘दर्शन’ ही मिला औरों का ग़मखार हमें अपने ग़म में तो ज़माने को परेशां देखा

[1]बनी नौए – आदम आज़ाए यक दीगरन्द ।
कि दर आफ्रीनश जे यक जौहर अंदं ।

Rakesh Khurana

एक सूफी शायर

अर्थात हम तमाम इंसान एक ही प्रभु की संतान हैं ,एक ही शरीर
के अंग हैं। जब हमारे जिस्म के एक हिस्से में कोई दर्द होता है , कोई पीड़ा होती है , तो बाकी जिस्म के सारे हिस्से उसे महसूस करते हैं इसी प्रकार हमें सबका दर्द अपना दर्द समझना चाहिए ।
[2] संत दर्शन सिंह जी महाराज जी ने अपने एक रूहानी शेअर में कहा है :-
एक ‘दर्शन’ ही मिला औरों का ग़मखार हमें ।
अपने ग़म में तो ज़माने को परेशां देखा

संत दर्शन सिंह जी महाराज जी

प्रस्तुति राकेश खुराना

जो धार्मिक मनुष्यों को मोक्षसुख देने वाला है उसको बारम्बार नमस्कार

ॐ नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च ।

Rakesh Khurana

मंत्रार्थ : जो सुख स्वरूप संसार के उत्तम सुखों को देनेवाला , कल्याण का करता , मोक्ष – स्वरूप , धर्युक्त कामों को ही करने वाला ,अपने भक्तों को सुख देने वाला , अत्यंत मंगलस्वरूप और धार्मिक मनुष्यों को मोक्षसुख देने वाला है उसको हमारा बारम्बार नमस्कार हो ।
वैदिक मन्त्र
प्रस्तुति राकेश खुराना

मोह माया के कारण सारा जग सोया हुआ है

मोह माया सबो जग सोया , याह भरम कहो क्यों जाये ।
कोई ऐसा संत सहज सुख दाता , मोहि मार्ग दे बताई ।

Rakesh Khurana

गुरु अर्जुन देव जी फरमाते हैं कि मोह माया के कारण सारा जग सोया हुआ है माया के फैलाव के कारण अंतर से भूल में जा रहा है , भ्रम के कारण इन्सान मोह में फंस रहा है । ये भ्रम कैसे जा सकता है ?
अर्थात कोई ऐसा संत ,महापुरुष जो प्रभु के दर्शन पा रहा है , हमें भी सोई हुई हालत से जगा दे । ऐसा रास्ता बता दे कि संसार में आवागमन के चक्र से छुटकारा मिल जाए ।
गुरु अर्जुन देव जी
प्रस्तुति राकेश खुराना

कामधेनू रूपी भक्ति से जो मांगोगे मिलेगा

जे असि भगति जानि परिहरही , केवल ज्ञान हेतु श्रम करही ।
ते जड़ काम – धेनु गृह त्यागी , खोजत आकु फिरहि पय लागी ।

कामधेनू रूपी भक्ति से जो मांगोगे मिलेगा

भाव

: जो लोग भक्ति को छोड़ देते हैं कि भक्ति कुछ नहीं है और समझते हैं कि ज्ञान ही सब कुछ है , ज्ञान के द्वारा ही मेहनत करने से प्रभु को पाया जा सकता है , ज्ञान के बगैर गति नहीं है उनके लिए तुलसी दास जी कहते है कि घर में काम – धेनु हो , वह छोड़कर आक के दूध को आकाश में ढूंढते फिरते हैं । जबकि भक्ति कामधेनु है । कामधेनु अर्थात उससे जो मांगो वही मिलता है , एक भक्ति आ जाये तो बाकि सब आ जाता है ।
संत तुलसी दास जी की वाणी
प्रस्तुति राकेश खुराना

नाम की महिमा बड़ी भारी है

नामु राम को कल्पतरु , कलि कल्याण निवास ।
जो सुमिरत भयो भाग ते , तुलसी तुलसीदासु।

Rakesh Khurana

भाव : तुलसी दास जी कहते हैं – जो राम नाम है अर्थात जो रमा हुआ नाम है , वह कल्प वृक्ष और कलियुग में कल्याण का निवास है । कलियुग में इसके सिवाय और कोई कल्याण नहीं । इस नाम के सिमरन से जो गरीब तुलसी था वह भी तुलसी दास बन गया । किसकी महिमा से ? नाम की महिमा से । नाम की महिमा बड़ी भारी है
संत तुलसी दास जी
प्रस्तुति राकेश खुराना

माया के दलदल की दुनिया में अपना ध्यान प्रभु की ओर करना है

वाट हमारी खरी उडीणी।
खंनिअहु तीखी बहुतु पिईणी।
उसु ऊपरि है मारगु मेरा ।
शेख़ फ़रीदा पंथु सम्हारि सवेरा ।

Rakesh Khurana


भाव : बाबा फ़रीद जी हमें समझा रहे हैं कि इस दुनिया में हमारा सच्चा मित्र , सच्चा मददगार केवल परमात्मा है और उसको पाने का रास्ता बहुत लम्बा है क्योंकि ये रास्ता प्रतीक्षा का रास्ता है , भक्ति का रास्ता है ।यह रास्ता छुरे की धार पर चलने जैसा है । यह दुनिया माया की दुनिया है , दलदल की दुनिया है इसी दुनिया में हमें अपना ध्यान प्रभु की ओर करना है इसलिए हम समय गँवाए नहीं , जल्दी से जाग जाएँ क्योंकि समय बहुत कम है । जल्दी से इस रास्ते पर चलना शुरू कर दें , वह रास्ता जो हमारी आत्मा का मिलाप परमात्मा से करा देता है ।
शेख़ फ़रीद जी की वाणी
प्रस्तुति राकेश खुराना

आदमी को सदा अपनी सीमा में रहकर ही कार्य करना चाहिए

रहिमन अति न कीजिये , गहि रहिये निज कानि ।
सैजन अति फूले तऊ , डार पात की हानि ।
अर्थ : रहीम दास जी कहते हैं किसी भी चीज की भी अति कदापि न कीजिये । हमेशा अपनी मर्यादा को पकड़े रहिये । जैसे सहिजन वृक्ष के अत्याधिक विकसित होने से उसकी शाखाएँ और पत्ते झड़ जाते हैं ।
भाव : अति हर चीज की बुरी होती है । आदमी को सदा अपनी सीमा में रहकर ही कार्य करना चाहिए
संत रहीम दास जी की वाणी
प्रस्तुति राकेश खुराना

सतगुरु हमारे पापकर्मों को धो देता है

इक नदिया इक नार कहावत , मैलो नीर भरो ।
जब दोनों मिल एक बरन भये, सुरसरी नाम परौ ।

संत सूरदास जी समझाते हैं कि एक नदी है एक नाला है; नदी में साफ़-सुथरा पानी
है तथा नाले में गन्दा पानी है। हम सांसारिक प्राणी तो काम, क्रोध, मोह, अहंकार, की
माया में फंसे हुए हैं, बुरे कर्मो की गन्दगी से लथ-पथ हैं। प्रभु तो निर्मल जल का समुद्र
है। वह करुणा , दया, प्रेम का अथाह सागर है। जब कोई गन्दा नाला , दरिया में
जाकर मिलता है तो उसका पानी भी साफ़ हो जाता है और दरिया का हम रंग बन
जाता है। इसी तरह हमारी आत्मा और हमारे सतगुरु का मिलाप होता है। हम जब अपने सतगुरु की शरण में जाते हैं तो सतगुरु हमारे पापकर्मों को धो देता है और यतन करते -करते हमारा मन परमात्मा के नाम में लीनता लाभ करने लगता है। और हमारे
अन्दर से काम, क्रोध, मोह, अहंकार, की गंदगी समाप्त हो जाती है।
संत सूरदास जी की वाणी
प्रस्तुति राकेश खुराना

इन्सान पूर्ण हैं क्योंकि उनके अन्दर खुदा का नूर है

माटी एक अनेक भान्ति , कर साजी साजनहारे ।
न कुछ पोच माटी के भांडे , न कुछ पोच कुम्हारे ।

न्सान पूर्ण हैं क्योंकि उनके अन्दर खुदा का नूर है

भाव : एक ही कुम्हार है और एक ही माटी है , उस मिट्टी से कुम्हार अनेक प्रकार के बर्तन बनाता है इसी प्रकार परमात्मा एक ही है परन्तु उसके बनाए हुए इंसान की सूरत जुदा -जुदा है।परमात्मा पूर्णता का प्रतीक है और उसके बनाए हुए इन्सान भी पूर्ण हैं क्योंकि उनके अन्दर खुदा का नूर है ।
प्रस्तुती राकेश खुराना

मेरा मुझ में कुछ नहीं , जो कुछ है सब तोर

मेरा मुझ में कुछ नहीं , जो कुछ है सब तोर ।
तेरा तुझ को सोंपते , क्या लागत है मोर ।
भाव : शिष्य गुरु को दे ही क्या सकता है । यह तो कहने की बात है कि मैंने दे दिया । यह तन तो मैंने इसलिए वार दिया क्योंकि गुरु का करम है मुझ पर , जो आज मेरा तन कायम है । मन जब तक मेरा नहीं होता , मैं दे नहीं सकता और मन को काबू में करने के लिए गुरु की नजरे इनायत की जरुरत है । उसके करम की जरुरत है । जो धन है वह तो देन उसी की है , तो मैंने अपना क्या दिया ? मैं दे ही क्या सकता हूँ ?
प्रस्तुति राकेश खुराना