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स्वामी सत्यानन्द जी महाराज ने राम नाम का दीपक दसों दिशाओं में जलाया

संत शिरोमणि इस युग के युगावतार, वन्दनीय; प्रातः कालीन पूजनीय स्वामी सत्यानन्द जी महाराज के निर्वाण दिवस के अवसर पर श्री शक्तिधाम मंदिर, लाल कुर्ती, मेरठ में विशेष श्रधांजलि सभा का आयोजन किया गया|पूजनीय स्वामी सत्यानन्द जी महाराज को श्रधांजलि देने के लिए भारी संख्या में श्रधालुजन मंदिर में एकत्र हुए।

पूज्य भगत नीरज मणि ऋषि जी


पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने अमृत प्रवचनों की वर्षा करते स्वामी जी के जीवन एवं उनके तप का वर्णन किया। उनहोंने बताया की स्वामी जी का जीवन बहुत ही सरल था। उन्हों कई ग्रन्थ भी लिखे जिन्हें श्रधालुजन बड़ी श्रधा एवं प्रेम से पढ़ते हैं तथा धर्मलाभ उठाते हैं|उन्होंने बताया कि ऐसे बहुत कम संत हैं जिन्हें सीधे ईश्वर दरबार से राम नाम का प्रशाद मिला। स्वामी जी ने इस राम नाम का दीपक दसों दिशाओं में जलाया स्वामी सत्यानन्द जी महाराज द्वारा रचित अमृतवाणी का पावन पाठ पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी के श्री मुख से हुआ। तथा स्वामी जी द्वारा लिखे गए भजनों का गायन भी किया गया।

कहु नानक सभ तेरी वडिआई

ऊँचा अगम अपार प्रभु कथनु न जाइ अकथु ।
नानक प्रभ सरणागति राखन कउ समरथु ।
भाव :हे प्रभु ! तुम अगम और अपार हो , अकथ हो और किसी प्रकार कथन में नहीं आ सकते । मैं तुम्हारी शरणागत हूँ और तुम ही रखने में समर्थ हो ।
तुधु आगै अरदासि हमारी जीउ पिंडु सभु तेरा ।
कहु नानक सभ तेरी वडिआई कोई नाउ न जाणे मेरा।
भाव : जीव पिंड सब तुमको अर्पण करके तुम से ही प्रार्थना है ।यह सब तुम्हारा ही प्रताप है , नहीं तो मुझे कौन जानता है ।
प्रस्तुती राकेश खुराना

प्रभुजी मेरे औगुन चित न धरो

प्रभुजी मेरे औगुन चित न धरो ।
समदरसी है नाम तिहारो , अब मोहिं पार करो ।
महाकवि संत सूरदास

प्रभुजी मेरे औगुन चित न धरो

भाव : महाकवि संत सूरदास कहते हैं हे प्रभु , आप मेरे पिता हैं और मैं तो एक बालक हूँ। बालक तो अक्सर गलतियाँ करता रहता है ।
कृपया आप मेरी गलतियों पर ध्यान न दें । आप तो सबको एक नजर से दखते हैं । आप के अन्दर तो समभाव है । हम माया
के जाल में फँसे हुए हैं , हे प्रभु आप से प्रार्थना है कि आप हमें इस चौरासी लाख जियाजून के चक्कर से निकालिये । मूलरूप से
हम प्रभु का ही अंश हैं , हम सब चाहते हैं कि वापस परमात्मा में जाकर लीन हो जायें ।
सूरदास जी को महाकवि[सूर सूर ] कहा जाता है इनकी संगीत मय कृष्ण भक्ति से समकालीन बादशाह अकबर भी इनके भजनों के कायल थे|महा कवि ने कृष्ण भक्ति में जीवन गुजार दिया| जीवन के अंतिम समय में इन्होने कृष्ण जन्म भूमि पर कृष्ण के भजन गा गा कर मौक्ष प्राप्त किया
प्रस्तुति राकेश खुराना

अहम् को त्यागो तो इंसान बनो

पत्थर एक बार मंदिर जाता है और भगवान बन जाता है और आदमी हजारों बार मंदिर जातहै और इंसान भी नहीं बन पाता, ऐसा क्यों ? आखिर ऐसा क्या है कि शिल्पकार पत्थर को तराशकर ऐसा बना देता है कि मनुष्य उसके आगे सजदा करने लगते हैं उसे पूजने लगते हैं और उसपर ऐसे विश्वास करने लगते हैं जैसे परमात्मा उनके सामने खड़ा हैं। वास्तव में ऐसा होता भी है कि सच्चे मन से उस पत्थर के स्वरुप के सामने प्रार्थना करने से सुनवाई होती भी है।

अहम् को त्यागो तो इंसान बनो


हमारे इस सवाल का जवाब संतजन हमें इस तरह समझाते हैं कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जब पत्थर शिल्पकार के हाथ में जाता है तो वह अपने आप को पूर्णतया सौंप
देता है। वह इस बात की चिंता छोड़ देता है कि शिल्पकार उसे काटेगा या उसपर छैनी हथोड़े से उसे तराशेगा । और इसी पूर्ण समर्पण भाव के कारण वह पत्थर एक दिन भगवान् का
स्वरुप बन जाता है।
मनुष्य जब मंदिर में जाता है तो वह सत्संग भी सुनता हैं , घंटियाँ भी बजाता है , अपने मस्तक तो प्रभु के स्वरुप के आगे झुकाता भी है परन्तु वह अपने अहम् को नहीं त्याग पाता और अपने आप को पूर्णतया समर्पित नहीं कर पाता । इसीलिए वह सच्चे अर्थों में इंसान भी
नहीं बन पाता ।

संत वाणी
प्रस्तुति राकेश खुराना

काल के दायरे से बाहर निकलने में रूहानी गुरु ही सहायक है

गुरु का महत्व और महिमा का वर्णन पौराणिक काल से हमारे शास्त्रों में दिया जा रहा है जो वर्तमान में भी जारी है|अनेक गुरुं + महंतों यहाँ तक की अवतारों ने भी गुरु के आगे शीश नवाया है|इसी कड़ी में प्रस्तुतु है दो महापुरुषों [स्वामी शिवदयालसिंह जी महाराज +संत दर्शन सिंह जी महाराज ] के विचार
गुरु बिन कभी न उतरे पार ।
नाम बिन कभी न होय उधार ।
शब्द : स्वामी शिवदयालसिंह जी महाराज
भाव : स्वामीजी महाराज हमें समझाते हैं हमें काल के दायरे से बाहर निकलना है किसी गुरु के बिना


हम ऐसा नही कर सकते । हमें या ऐसे गुरु की तलाश करनी चाहिए जो स्वयं रूहानियत के रास्ते
पर चलता हो, एक ऐसा महापुरुष जो प्रभु के हुक्म से यहाँ भेजा गया हो ।ऐसा गुरु जब हमें परमात्मा
के शब्द से जोड़ता है तो हमारा उद्धार संभव है ।
संत दर्शन सिंह जी महाराज ने भी अपने एक रूहानी शेर में फ़रमाया है :-
गुरु मिले तो मुहब्बत के राज खुलते हैं ।
निजात मिलती है सारे गुनाह धुलते हैं ।।
प्रस्तुति राकेश खुराना

सच्चाई के साथ जुड़ने से हमारे घमंड का सत्यानाश होता जाता है |

किस का दर है किह जबीं आप झुकी जाती है |
दिले खुद्दार ! तेरी आन मिटी जाती है ||
संत दर्शन सिंह जी महाराज हमें समझाते हुए कहते हैं कि वह कौन सी जगह है
कि जबीं (गर्दन , सिर) अपने आप झुकी चली जाती है और हम इन्सान , जो बहुत
घमंडी होते हैं , अहंकार से भरे होते हैं , हमारी वह आन खुद -ब -खुद मिटती चली
जाती है | जैसे – जैसे हम सच्चाई के साथ जुड़ते हैं , नाम के साथ जुड़ते हैं , शब्द
के साथ जुड़ते हैं , वैसे – वैसे हमारी खुदी का सत्यानाश होता जाता है |
संत दर्शन सिंह जी महाराज
प्रस्तुती राकेश खुराना

सच्चाई के साथ जुड़ने से हमारे घमंड का सत्यानाश होता जाता है |

ध्यान से तनाव को ख़त्म करो :संत राजेंद्र सिंह

ध्यान : तनाव को ख़त्म करने की औषधि सावन कृपाल रूहानी मिशन के वर्तमान संत राजेंद्र सिंह जी ने तनाव से भरी आज की जिन्दगी के लिए ध्यान जरुरी बताया है|

ध्यान : तनाव को ख़त्म करने की औषधि :संत राजेंद्र सिंह


संत राजेंद्र सिंह जी का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों से भावनाओं के तूफ़ान और तनाव को ख़त्म करने हेतु लोगों का रुझान
ध्यान की विद्या की ओर हुआ है| ध्यान से शारीरिक और दिमागी तौर पर बहुत से फायदे
हैं| यह सुरक्षात्मक, असरदार और निशुल्क है | जब हम एक बार ध्यान की विद्या सीख
लेते हैं, तब हमारे पास अंतर में हर समस्या का समाधान तैयार होता है |
ध्यान की विधि क्या है ?

ध्यान के लिए हम किसी ऐसे आसन का चयन करते हैं जिसमे हम कुछ समय के लिए
शांत और निश्चित मुद्रा में बैठ सकें| ध्यान के द्वारा हम अपनी एकाग्रता को दो आँखों
के पीछे मध्य बिंदु पर टिकाते हैं जिसे हम शिवनेत्र या दसवां द्वार कहते हैं| इस प्रकार
हम अपने ध्यान को बाहरी जिस्म से हटाते हैं|

ध्यान की अवस्था केवल मानसिक और
शारीरिक स्तर पर ही होती है| पर जब हम ध्यान के द्वारा अंतर में प्रभु की ज्योति के
दर्शन करते हैं और उसके शब्द को सुनते हैं, तब इस ज्योति और शब्द की धारा से हम
अंतर का प्रभुरूपी प्यार, चेतना और परम सुख पाते हैं|
संत राजिंदर सिंह जी महाराज
प्रस्तुती राकेश खुराना

चौथा राम सबसे न्यारा है वही सृष्टि का कर्ता-धर्ता है

Sant Kabir Das

एक राम दशरथ का बेटा , एक राम घट-घट में बैठा
एक राम का सकल पसारा , एक राम सबहूँ ते न्यारा
अर्थात: कबीर साहब के कथनानुसार राम चार प्रकार के हैं , उन्होंने फ़रमाया है :-
[ एक राम]
तो राजा दशरथ के पुत्र थे जिन्होंने यहाँ राज किया . वो एक आदर्श पुत्र , आदर्श पति ,
आदर्श भाई तथा आदर्श राजा थे . जब भी हम अपने मुल्क की बेहतरी की दुआ करते हैं तो यही
कहते हैं कि यहाँ राम राज्य हो जाए.
[दूसरा वो राम है,]
जो हमारे घट – घट में बैठा है और वो है हमारा मन . उसका`काम है कि वो हमें
परमार्थ के रास्ते में तरक्की न करने दे , यद्यपि हमारा मन भी ब्रह्म का अंश है , ब्रह्म का स्रोत है
परन्तु वह अपने स्रोत को भूल चूका है और संत हमें समझाते हैं कि ” मन बैरी को मीत कर ”
[ तीसरा वो राम है]
जिसका ये सारा पसारा है इसमें माया भी है , काम – क्रोध – लोभ – मोह – अहंकार
भी है बाकि भी हर तरह की कशिश है , हमें इनसे बचने का प्रयास करना है .
[चौथा राम]
सबसे न्यारा है , सबसे ऊंचा है ,सबसे बड़ी ताकत है , वही इस सृष्टि का कर्ता-धर्ता है ,
हमारे जीवन का लक्ष्य तभी पूरा होता है जब हम , जितनी भी अवस्थाएँ हैं , उन सबसे गुजरकर प्रभु
को पा लें. संत जब भी बात करते हैं , वो उसी राम का जिक्र करते हैं
संत कबीर वाणी
प्रस्तुती राकेश खुराना .

गुरु धीरे -धीरे हमें शरीर और शारीरिक व्यापार से ऊपर ले जाता है .


मेरी नज़र का हुस्न भी शरीके हुस्न हो गया
वो और भी निखर गए वो और भी संवर गए

अर्थात गुरु खूबसूरती का स्रोत तो होता ही है मगर ज्यों – ज्यों हम उसकी रहमत से तरक्की
करते चले जाते हैं उसका हुस्न और निखरता चला जाता है , और रोशन होता चला जाता है
और हमें वो ज्यादा खूबसूरत दिखाई देता है . अगर खुशकिस्मती से हमें ऐसा गुरु मिल जाये
तो फिर हमें अपना सब कुछ उस पर न्यौछावर कर देना चाहिए . अगर हम अपना सब कुछ
न्यौछावर कर देंगे तो फिर गुरु धीरे -धीरे हमें शारीर और शारीरिक व्यापार से ऊपर ले
आयेगा . हमारे अन्दर जो असली सूर्य और चन्द्रमा हैं , उनके मण्डलों से गुजारकर गुरु हमें
अपने दिव्य स्वरूप के दर्शन कराएगा और वो दिव्य स्वरूप ज्यादा से ज्यादा रोशन और
सुंदर होता चला जायेगा .
सावन कृपाल रूहानी मिशन आश्रम के संत दर्शन सिंह[१९२१-१९८९] जी महाराज जी की रूहानी शायरी
प्रस्तुती राकेश खुराना

सच्चे गुरु – भक्त के समक्ष कामवासनाएँ ठहरती नहीं हैं .

लगा रहे सतज्ञान सों , सबही बंधन तोड़
कहैं कबीर वा दास सौं, काल रहै हथजोड़
भाव : कबीर दास जी शिष्य की महिमा बताते हुए कहते हैं , जिसने विषयों से अपने मन को हटा लिया है,
जो सांसारिक बन्धनों से रहित है और सत्य – स्वरूप में जिसकी दृढ निष्ठा है , ऐसे गुरु – भक्त के
सामने तो काल भी सिर झुकाए हुए रहता है अर्थात – मन की लम्बी दौड़ और काम वासना ही
मनुष्य का काल है . एक सच्चे गुरु – भक्त के सामने कामवासनाएँ या कल्पनाएँ ठहरती ही नहीं हैं .
कबीर संत थे या दास यह हमेशा चर्चा का विषय रहा है|वास्तव में कबीर संत और दास दोनों ही थे|उन्होंने एक जुलाहे परिवार में परवरिश पाई थी मगर विचारों से क्रांतिकारी थे उन्होंने एक धर्म या कुरीतिओं में बंधे रहना कभी स्वीकार नहीं किया| संत कबीर की भाषा को पञ्च मेल खिचडी भी कहा जाता है|हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मो के अनुयायियों ने उन्हें अपनाया है यहाँ तक की वर्तमान में सिख धर्म में भी कबीर की अमृत अमर वाणी का आदर किया गया है|
संत कबीर वाणी
प्रस्तुती राकेश खुराना