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Tag: प्रस्तुती राकेश खुराना

ममता का सर्वथा नाश होना ही अंत:करण की शुद्धि है: श्रीमद्भगवद्गीता

श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता
श्रीभगवानुवाच
कायेन मनसा बुद्ध्या केवलैरिन्द्रियैरपि ।
योगिन: कर्म कुर्वन्ति संगं त्यक्त्वात्मशुद्धये ।
कर्मयोगी आसक्ति का त्याग करके केवल (ममता रहित )इन्द्रियां , शरीर , मन और बुद्धि के द्वारा अंत:करण की शुद्धि के लिए ही कर्म करते हैं ।
व्याख्या : ममता का सर्वथा नाश होना ही अंत:करण की शुद्धि है । कर्मयोगी साधक शरीर -इन्द्रियाँ -मन -बुद्धि को अपना तथा अपने लिए मानते हुए , प्रत्युत संसार का तथा संसार के लिए मानते हुए ही कर्म करते हैं । इस प्रकार कर्म करते – करते जब ममता का सर्वथा अभाव हो जाता है , तब अंत:करण पवित्र हो जाता है ।
श्लोक

Rakesh Khurana On श्रीमद्भगवद्गीता


प्रस्तुती राकेश खुराना

कुदरत एक है , सभी बन्दे भी उसी के हैं , इसीलिए कोई बुरा या अच्छा कैसे हो सकता है?

वर्तमान राजनीति में आ रहे रोजाना के आपत्तिजनक बयानों के परिपेक्ष्य में सेकड़ों साल पहले प्रतिष्ठित श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी की वाणी आज प्रासंगिक और अनुकरणीय है
अवलि अलह नूर उपाइआ कुदरति के सभ बन्दे ।
एक नूर ते सभु जगु उपजिआ कउन भले को मंदे

rakesh khurana कुदरत एक है , सभी बन्दे भी उसी के हैं ,

भाव : परमात्मा सबसे पहले अकेला था । नूर पहले उत्पन्न हुआ । जितने भी बन्दे हैं , सभी उसी नूर से बने हैं यह सारा जग उसी नूर का बना है ,हम सब को एक ही परम पिता परमेश्वर ने बनाया है, तो यहाँ पर कौन अच्छा कौन बुरा हो सकता है ?हर एक जीव उस नूर के जरिये यहाँ आया है । जिसमे प्रभु का नूर बस्ता है , वह बुरा कैसे हो सकता है ? यही तो हमारे लिए समझने की बात है यही सच्ची समझ “विवेक ” है ।
वाणी : श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी
प्रस्तुती राकेश खुराना

कामनाओं से रहित होकर नाम जपने वाले ही ईश्वर की भक्ति का रस लेते हैं

सकल कामना हीन जे , राम भक्ति रस लीन ।
नाम सुप्रेम पियूष हृद , तिनहूं किए मन मीन ।
संत तुलसी दास जी

Rakesh khurana

भाव: संत तुलसी दास जी कहते हैं जो कामनाओं से रहित होकर नाम जपते हैं —मुख्य रूप से मनुष्य चार कामनाओं की पूर्ति के लिए ईश्वर को याद करता है —कोई बीमारी के इलाज के लिए , कोई रूपये के लिए , कोई मान- सम्मान के लिए और कोई मोक्ष प्राप्ति के लिए —– वे कहते हैं कि जो इनसे रहित होकर नाम जपते हैं वो ही सच्चे अर्थों में ईश्वर की भक्ति का रस लेते हैं ।जैसे मछली पानी के बिना नहीं रह सकती , पानी उसका जीवन आधार है ऐसे ही नाम का जाप , ईश्वर की सच्चे मन से आराधना उनका जीवन आधार बन जाता है , वे उसके बिना नहीं रह सकते ।
संत तुलसी दास जी
प्रस्तुती राकेश खुराना

गुरु के आदेशों को मानने वालों का अनुसरण करो

अन्दरों कुसुद्दा कालियां बाहरों चिटमुहियां ।
रीसां करे तिन्हाडिया जो सेवन दर खाड़ियाँ ।

अर्थात अंतर में तो विषय – विकार की कालिख भरी हुई है और बाहर चिकना – चुपड़ा चेहरा बनाकर हम गुरु को , प्रभु को अपनी और आकर्षित करना चाहते हैं । हम उन लोगों की नक़ल करते हैं , जो गुरु के आदेश पर चलते हैं , उनका हुक्म मानते हैं ।
गुरुवाणी
प्रस्तुति राकेश खुराना

Rakesh Khurana

नाम की कमाई से आत्मा का परमात्मा से मिलन

जिन्नी नाम ध्याइया गए मुसक्कत घाल ।
नानक से मुख उझले केती छुट्टी नाल ।

नानक से मुख उझले केती छुट्टी नाल

गुरु नानक देव जी ने आत्मा और परमात्मा के मिलाप की मंज़िल की महिमा जपजी साहब में गाई है |
गुरु नानक देव जी ने कहा है कि जिन लोगों ने नाम की आराधना अथवा नाम की कमाई की , अंतर में ज्योति और श्रुति से जुड़कर प्रभु के धाम पहुंचे , उनकी मुशक्क्तें , उनका परम पुरषार्थ सफल हो गया । वो न सिर्फ स्वयं आवागमन से छूट कर परम पद पा गए , मालिक की दरगाह में न सिर्फ अपना मुख उजला कर गए , वरन अपने साथ अनेकों जीवों का कल्याण कर गए ।
गुरु नानक वाणी
प्रस्तुति राकेश खुराना

गुरुओं , संतों – महात्माओं की सल्तनत में हिसाब – किताब नहीं होता

न करदा गुनाहों की ये हसरत कि मिले दाद
ए राहिब अगर इन कर्दा गुनाहों की खता हो ।
मिर्ज़ा ग़ालिब

Rakesh Khurana

मिर्ज़ा ग़ालिब के इस रूहानी शायरी की व्याख्या करते हुए बताया गया है कि ग़ालिब जी कहते हैं कि मैंने बहुत गुनाह किये हैं मगर आप तो हिसाब करने बैठ गए , ये तो आपका काम नहीं है क्योंकि गुरुओं , संतों – महात्माओं की सल्तनत में हिसाब – किताब नहीं होता । अगर वे हिसाब – किताब के चक्कर में पड़ जाएँ तो हम में से कोई भी उनकी दया का पात्र न रहे ।आपका काम तो रूहानियत के खजाने लुटाने का है । इसी प्रकार सावन कृपाल रूहानी सत्संग मिशन के संत दर्शन सिंह जी महाराज ने भी अपने एक शेअर में कहा है :-
बस एक बार ही उठी निगाह महफ़िल में
किसे खबर कि खजाने लुटा दिए तूने ।
संत दर्शन सिंह जी महाराज
प्रस्तुती राकेश खुराना

पारस बिना भेदभाव के सबको खरा सोना बना देता है

एक लोहा पूजा में राखत , एक घर बधिक परों ।
पारस गुण अवगुण नहीं चितवै , कंचन करत खरौ ।

Rakesh Khurana


भाव : संत सूरदास जी कहते हैं कि लोहा तो एक है मगर उसको कई जगह इस्तेमाल करते हैं । लोहे से चाक़ू, छुरी, तलवार बनती है और उसी से देवताओं की मूर्ति भी बनती है । छुरी , तलवार आदि कसी , जल्लाद , हत्यारे के पास होती है और दूसरी ओर देवता की मूर्ति की पूजा होती है । मंदिरों में लोहे के त्रिशूल , चक्र आदि चिन्ह रखे जाते हैं । पारस के पास किसी भी किस्म का लोहा चला जाये चाहे कसी की छुरी हो या मंदिर में रखे जाने वाले चिन्ह , पारस दोनों में फर्क नहीं करता , वह दोनों को खरा सोना बना देता है । संत सूरदास जी प्रभु से प्रार्थना करते हुए कहते हैं हे प्रभु आप समदर्शी है आपके पास गुनाहगार भी आते है और पाक – पाकीज़ा भी आते हैं आप सब पर अपनी नज़रे – करम करते हैं और उनका उद्धार करते हैं ।
संत सूरदास जी की वाणी
प्रस्तुती राकेश खुराना

अंधे वो हैं जिनके दिव्य चक्षु नहीं खुले

अंधे से न आखियन जिन मुख लोईण नाहि ।
अंधे से ही नानक जो खसमों कुत्थे जान ।

Rakesh Khurana

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भाव : अँधा उनको नहीं कहते जिनके चेहरे पर आँखें नहीं लगी हुई हैं ।अंधे वो हैं जिनके दिव्य चक्षु नहीं खुले| दिव्य चक्षुओं से अंतर में हम प्रभु के दर्शन कर सकते हैं । वो प्रभु जन – जन और कण – कण में समाया हुआ है , लेकिन हम उस ज्योतिर्मय प्रभु को देख नहीं रहे । वो सर्वव्यापक प्रभु सतगुरु का मानव तन धारण कर हमारी रक्षा और मार्गदर्शन के लिए इस धरा पर आता है , आकर हमें मोह निद्रा से जगाता है और हमारी अंतर की आँख खोलता है ।
गुरुवाणी
प्रस्तुती राकेश खुराना

धनवंता सोई जानिए, नाम रतन धन होय

कबीर सब जग निर्धना, धनवंता नहिं कोय ।
धनवंता सोई जानिए, नाम रतन धन होय ।
संत कबीर दास जी

धनवंता सोई जानिए, नाम रतन धन होय

भाव : संत कबीर दास जी कहते हैं हम दुनिया में चाहे कितने ही हीरे , जवाहरात , सोना खरीद लें परन्तु फिर भी निर्धन ही रहेंगे , धनवान नहीं बन सकते । वही धनवान है जिसे ‘नाम’ का खजाना मिल गया है और यह नाम का खजाना हमें किसी पूर्ण महापुरुष से ही मिल सकता है ।
संत कबीर वाणी
प्रस्तुती राकेश खुराना

प्रभु जी मेरे औगुण चित न धरो

प्रभु जी मेरे औगुण चित न धरो ।
सम दरसी है नाम तिहारो, अब मोहिं पार करो ।

प्रभु जी मेरे औगुण चित न धरो


भाव : संत सूरदास जी कहते हैं , हे प्रभु ! मैं बड़ा गुनाहगार हूँ , गुनाहों से बचना मेरे बस की बात नहीं है , मुझे सिर्फ आपकी बख्शिश का ही सहारा है । आप मुझ पर दया करके मेरे गुनाहों को नज़र अंदाज कर दीजिए । आप सबको एक नजर से अथवा एक आत्मा के स्तर से देखते हैं । जो भी आपको पुकारता है आप उसकी मदद करते हैं मैं भी आपको दिल से पुकार रहा हूँ , आप मुझे हमेशा के लिए मुक्त कर दीजिए। मुझे मोह -माया से बचाइये और अपने चरणों में जगह दीजिए।
संत सूरदास जी की वाणी
प्रस्तुती राकेश खुराना